
सूचना के अधिकार के प्रयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है
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सूचना के अधिकार अधिनियम के पारित होने के लगभग दो दशक बाद यह दिखाई दे रहा है कि सरकारें इसकी पारदर्शिता से बहुत सहज नहीं हैं। वे लगातार ऐसा कुछ कर रही हैं, जिससे इसकी प्रभावशीलता को कम किया जा सके। कैसे –
- कानून को विफल करने का एक तरीका केंद्र व राज्य स्तर पर इसके कामकाज को बाधित करना है।
- कानून में संशोधन का प्रयास करना।
- सूचना में देरी या सूचना देने से इनकार करना।
- केंद्रीय और कुछ राज्य सूचना आयोग में बड़ी संख्या में पदों पर नियुक्ति न करना।
- कुछ वर्ष पहले केंद्रीय सूचना आयुक्त के लिए निर्धारित पाँच वर्ष के कार्यकाल को समाप्त करके इसे खुला कर देना।
- जहाँ नियुक्ति हो भी रही हैं, वहाँ अलग-अलग क्षेत्रों के उम्मीदवारों को नियुक्त न करके सिविल सेवकों को चुना जाना।
बड़ी संख्या में पदों की रिक्तियों के कारण बैकलॉग होना साधारण सी बात है। अंततः लोग सूचना मांगने से हतोत्साहित होंगे। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना आयोगों में रिक्तियों पर सवाल उठाया है। उम्मीद है कि स्थिति में कुछ सुधार हो सके।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 09 जनवरी, 2025
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