सूचना के अधिकार पर पहरे

Afeias
28 Dec 2018
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Date:28-12-18

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सन् 2005 में संसद ने जनता को आवश्यक कार्यों से जुड़ी सूचनाएं मुहैया कराने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया था। इसके अनुभाग 7(1) के अंतर्गत आम नागरिक किसी सरकारी विषय से जुड़ी सूचना मांगने का अधिकारी है। अधिनियम के सेक्शन 8 और 9 में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जो सूचना के अधिकार से बाहर रखे गए हैं। हाल के कुछ वर्षों में इस अधिकार को लगातार नजरंदाज किया जा रहा है।

अधिनियम के अनुभाग 8(1) (प) के अंतर्गत व्यक्तिगत मानी जाने वाली सूचनाओं को देने से इंकार किया जा सकता है। अनुभाग में दिए हुए प्रावधान के अनुसार ऐसी व्यक्तिगत सूचना, जिसका सामाजिक गतिविधियों और हितों से कई सरोकार नहीं है, या जिसके खुलासे से किसी व्यक्ति की निजता पर अनुचित आक्रमण माना जाए, उसे देना निषेध है।

यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि कुछ व्यक्तिगत सूचनाएं; जैसे-मेडीकल रिकॉर्ड या बैंक के लेन-देन ब्यौरा आदि कुछ सरकारी विभागों के पास हो सकता है। परन्तु इसका सार्वजनिक गतिविधि से कोई लेना-दना नहीं है। इसी प्रकार किसी छापे के दौरान अधिकारियों को किसी की निजी जानकारी मिल सकती है। परन्तु एक बार फिर इसका संबंध सार्वजनिक गतिविधि से नहीं है, और इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।

दुर्भाग्यवश, सूचना दिए जाने से छूट के प्रावधान की कांट-छांट करके, अनेक ऐसी सूचनाओं को देने से इंकार किया जा रहा है, जिन्हें प्राप्त करना एक आम नागरिक का अधिकार है। विधायक खातों के व्यय, अधिकारियों के अवकाश, जाति प्रमाण पत्र, शैक्षणिक योग्यता आदि सूचनाओं को देने से मना कर दिया जाता है।

बहुत सी सूचनाओं को किसी निजता पर अनुचित आक्रमण बताकर देने से इंकार कर दिया जाता है। किसी की ‘शिष्टता या नैतिकता’ को बचाए रखने के लिए अनुच्छेद 19 (1)(ए) में दिए गए प्रावधानों पर 19(2), अनेक प्रतिंबंध लगाता है। परन्तु इससे पहले प्रावधान में दिए गए इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि, ‘‘संसद या विधान सभा को दी जा सकने वाली सूचना के लिए किसी आम नागरिक को इंकार नहीं किया जा सकता।’’

सूचना के अधिकार से इंकार किए जाने का एक दृष्टिकोण उन सूचनाओं के इंकार से है, जिनके उद्घाटन से किसी के हित की हानि हो सकती है। लेकिन अगर यह सूचना किसी भी हाल में विधायिका को दिए जाने योग्य है, तो वह सार्वजनिक हो ही जाती है। अतः अनुभाग 8(1)(आई) के अंतर्गत सूचना से इंकार किए जाने से पहल संबंधित व्यक्ति को इस बात का मूल्यांकन कर लेना चाहिए कि उक्त सूचना संसद या विधान सभा के मांगे जाने पर भी नहीं दी जा सकती।

सूचना के अधिकार को निर्बल किए जाने का ऐसा अवैध एवं असंवैधानिक उपाय, अनेक अधिकारी, आयुक्त और न्यायालय अपना रहे हैं। इस प्रकार से एक अत्यंत महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार का हनन किया जा रहा है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित शैलेश गांधी के लेख पर आधारित। 17 नवम्बर,2018

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