
सूचना के अधिकार कानून पर सरकार की कैंची
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- आरटीआई में संशोधन करके व्यक्तिगत जानकारी को प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह प्राप्त करना तभी संभव है, जब जानकारी प्राप्त करने का उद्देश्य जनहित में हो।
- इसके चलते पेंशन, राशन, सरकारी छात्रवृत्ति आदि से संबंधित लाभों को वितरित करने वाले अधिकारी की जानकारी प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा। आम नागरिक के लिए यह परेशानी का बड़ा कारण है।
- चिंता की बात यह भी है कि यह बदलाव, आरटीआई में चल रहे बदलावों की एक लंबी श्रृंखला का हिस्सा है, जिसने इस कानून के मूल स्वरूप को खत्म कर दिया है।
- केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर मौजूद सूचना आयोग में सालों से पद खाली पड़े हैं। एक रिपोर्ट से पता चलता है कि मणिपुर में 2 साल से कोई सूचना आयुक्त ही नहीं है।
- नतीजतन, सूचना आयोग में दर्ज शिकायतों का अंबार बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों की तुलना में, 2015 से केंद्रीय सूचना आयोग ने अपीलों की अस्वीकृति में 60% से अधिक की वृद्धि देखी है।
आरटीआई ने नागरिक शक्ति को बढ़ाया था। इसमें कहा गया था कि जो जानकारी सांसदों को दी जा सकती है, उसे आम नागरिकों को भी दिया जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश, सूचना आयोगों की बदहाली ने इस जन-शक्ति को कम कर दिया है। इससे भी अधिक निराशा की बात यह है कि संसद में इस संशोधन पर कोई बहस या विचार-विमर्श नहीं किया गया है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 अगस्त, 2023
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