श्रम कानून पर विवाद
Date:14-10-20 To Download Click Here.
हाल ही में संसद ने श्रम कानून से जुड़े तीन अहम विधेयकों को पारित किया है। विविध श्रम कानूनों को मजबूत करने और सुधारों की शुरूआत करने के उद्देश्य से ही तीन श्रम कोडो को बिना अधिक लंबित किए पारित किया गया है। इस कानून को एक सीमित बहस के बाद विपक्ष की अनुपस्थिति में ही पारित कर दिया गया, क्योंकि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये तीनों कोड 2019 की संबंधित चार संहिताओं का एक अद्यतन संस्करण हैं, जिनकी एक स्थायी समिति द्वारा जांच की गई थी। ये तीन संहिताएं हैं –
- औद्योगिक संबंध संहिता अधिनियम, 2020
- सामाजिक सुरक्षा संहिता अधिनियम, 2020
- आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ एवं कार्यदशा संहिता, अधिनियम, 2020
क्या परिवर्तन किए गए –
- औद्योगिक संबंध संहिता के जरिए श्रम मंत्रालय ने श्रमिकों की भर्ती और छंटनी को लेकर कंपनियों को ज्यादा अधिकार दिए हैं। अभी 100 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को छंटनी या यूनिट बंद करने से पहले सरकार की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती थी। इस सीमा को बढ़ाकर 300 कर्मचारी तक कर दिया गया है।
- इस कानून से सभी श्रमिक और कर्मचारी किसी न किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आएंगे। इसका सबसे अधिक लाभ असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोगों को मिल सकेगा।
- आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ एवं कार्यदशा संहिता बिल के तहत सरकार ने स्टाफिंग फर्मों के लिए सिंगल लाइसेंस की अनुमति दी है। अनुबंध पर कर्मचारियों को रखने के लिए कई स्थानों पर इसकी जरूरत पड़ती है। पहले इसके लिए कई लाइसेंस लेने की व्यवस्था थी। अनुबंधित कर्मचारियों की सीमा को 20 से बढ़ाकर 50 कर दिया गया है।
श्रम कोडों की शुरूआत और दृष्टि –
इस विचार की जड़ द्वितीय राष्ट्रीय आयोग की जून, 2002 की रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में श्रमिकों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना आर्थिक गतिविधियों को गति देने की व्यापक दृष्टि रही है। नए प्रावधानों में यह पर्याप्त रूप से परिलक्षित होता है या नहीं, यह संहिताओं के प्रशासन के अनुभव से परखा जाएगा।
लगभग सभी ट्रेड यूनियन नए कोड का विरोध कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि छूट की वास्तविक शक्तियां संबद्ध सरकार को प्रदत्त है, और इन सरकारों के नियम-कानून पर शायद यूनियन पूरा भरोसा न रखते हो। कारण ये भी हैं कि छंटनी की सीमाए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को कार्यकारी आदेश के द्वारा बढ़ाया जा सकता है। सुरक्षा मानकों को भी बदला जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों को कानून से संबद्ध विवेकाधीन शक्तियां दिए जाने से कर्मचारियों के हितों का वास्तव में कितना ध्यान रखा जाएगा, इसकी अनिश्चितता बनी हुई है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 सितम्बर, 2020