शक्तिशाली नगर-निकाय का महत्व
Date:26-02-21 To Download Click Here.
हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। भारतीय संविधान में प्रति पाँच वर्ष में वित्त आयोग के गठन को अनिवार्यता दी गई है। यह केंद्र सरकार को राज्यों के साथ राजस्व के बंटवारे पर सलाह देता है। हाल के दशकों में वित्त आयोग, ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों को भी राजस्व आवंटन की सिफारिश करता रहा है।
चूक कहाँ हो रही है ?
- यूं तो वित्त आयोग का मानना है कि विकास को गति देने के लिए शहरीकरण बहुत जरूरी है, परंतु भारत को मौलिक रूप से ग्रामीण ही माना जाता है। हमारी जनगणना के अनुसार मात्र 30% जनसंख्या ही शहरी है। विश्व बैंक के अनुसार भारत की 55% आबादी को शहरी माना जाना चाहिए। विकेंद्रीकरण से ग्राम पंचायतों का स्थान नगर पालिका ले सकती हैं। अतः भारत को सबसे पहले नगर की अवधारणा को विस्तृत करना होगा।
- 15वें वित्त आयोग ने राजस्व स्थानांतरण के लिए बिना शर्त और सशर्त रूपरेखा बनाई है।
अन्य देशों के अनुभव से समझा जा सकता है कि बिना शर्त अनुदान प्राप्त करने वाले स्थानीय निकाय अपने करों को हटाने या कम करने की क्षमता रखते हैं। भारत में भी स्थानीय राजस्व संग्रह से जुड़े अनुदान के माध्यम से इस समस्या से बचा जा सकता है। परंतु वित्त आयोग ने बिना शर्त अनुदान और राष्ट्रीय प्राथमिकता से जुड़े क्षेत्रों के लिए दिए जाने वाले अनुदान के मिश्र रूप की सिफारिश की है। दस लाख से ऊपर की जनसंख्या वाले शहरों के लिए ‘मिलियन-प्लस सिटीस चैलेंज फंड’ के माध्यम से अतिरिक्त निधि की सिफारिश की गई है। इससे मेयर की शक्तियों में बढ़ोत्तरी की कोई खास उम्मीद नहीं की जा सकती।
राजस्व का विकेंद्रीकरण कैसे हो, जब तक नेता न चाहें –
- संविधान के 73वें और 74वें संशोधन में राज्य वित्त आयोग के गठन को अनिवार्य बताया गया है। इसके बावजूद राज्य स्तरीय नेताओं ने ऐसा होने नहीं दिया हैए क्योंकि वे राज्य निधि और उससे जुड़ी शक्ति पर अपना वर्चस्व चाहते हैं। स्थानीय निकायों को उनके राजस्व संबंधी पूर्ण अधिकार सौंपकर उन्हें चंगुल से मुक्त नहीं करना चाहते हैं।
- राजस्व प्रशासनिक और कर-शक्तियों के हस्तांतरण के बिना बहुत से शहरों का प्रबंधन लचर हो गया है। राज्यों ने नगर-निकायों को दबा रखा है, और ये राज्य स्तरीय नेताओं के बैठाए पुतलों के नीचे दबे हुए हैं। नगरों के अधिकांश नौकरशाह ऐसे हैं, जो नगर सरकार के प्रति जवाबदेह न होकर, बड़े नेताओं के प्रति जवाबदेह हैं।
राजस्व की राजनीति में फंसे शहरी-निकायों को ऐसे मेयरों की बहुत जरूरत है, जो अपने शक्तिशाली प्रदर्शन के बल पर नगरों को ऊँचाइयों तक ले जाएं। भारत के भविष्योन्मुखी विकास का रास्ता इनसे ही होकर जाता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित स्वामीनाथन अंकलेश्वरैया अय्यर के लेख पर आधारित। 10 फरवरी, 2021