महिलाओं को वयस्क कब माना जाएगा

Afeias
25 Feb 2021
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Date:25-02-21

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हाल ही में गर्भपात संबंधी अर्जेंटिना के कानून के मद्देनजर भारतीय संसद ने भी अपने इस कानून में संशोधन पर विचार किया है। गौरतलब है कि अर्जेंटिना का यह कानून ऐतिहासिक माना जा रहा है। अभी तक वहाँ बलात्कार पीड़िता और महिला के स्वास्थ पर खतरे की स्थिति में ही गर्भपात की अनुमति थी, परंतु इस कानून के बाद अब गर्भपात की इच्छा रखने वाली महिलाओं को वैध और सुरक्षित प्रक्रिया का लाभ मिल सकेगा। भारत का कानून इससे अलग है।

क्या कहता है भारतीय कानून ?

भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत गर्भपात को वैध माना जाता है। इसकी कुछ शर्तें हैं –

  • गर्भधारण के केवल 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता है।
  • 12 सप्ताह से ज्यादा के गर्भ की स्थिति में एक अन्य चिकित्सक की राय लेना अनिवार्य है।
  • बलात्कार पीड़िता या मानसिक विक्षिप्त महिला को गर्भपात की अनुमति है।

इसके अलावा गर्भ के कारण अगर महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा हो, तो उसे गर्भपात की अनुमति मिल सकती है।

कानूनों के प्रावधानों को लेकर हमेशा से विरोध होता रहा है। यहाँ महिलाओं का अपनी देह पर ही अधिकार नहीं है। बल्कि कानून के माध्यम से सरकार उस पर नियंत्रण रख सकती है। इसके पीछे तर्क दिया जाता रहा है कि अगर कोई महिला अपनी सहमति से लैंगिक संबंध बनाती है, परंतु किसी कारणवश 20 सप्ताह से अधिक का गर्भ गिराना चाहती है, तो न्यायालय चाहे तो उसे अस्वीकृत कर सकता है। ऐसी स्थिति में महिला गर्भपात के लिए गैर-कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करती है, जो जानलेवा हो सकते हैं।

भारत में असुरक्षित गर्भपात से अनेक महिलाओं की मृत्यु होती है। यह महिलाओं की मृत्यु का तीसरा बड़ा कारण है।

  • गर्भपात संशोधन कानून में 20 सप्ताह के गर्भ की सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है। इसके लिए डॉक्टर की अनुमति और राय दोनों ही जरूरी होगी।
  • विधेयक के अंतर्गत प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में एक मेडिकल बोर्ड की स्थापना अनिवार्य है। विडंबना यह है कि ऐसे मेडिकल बोर्ड केवल तथ्यों पर नजर रखते हैं। लेकिन उनकी अपनी मान्यताएं भी आड़े आ जाती हैं। यह एक बड़ी चुनौती है।
  • विधेयक में गर्भ के असामान्य होने की स्थिति में कभी भी गर्भपात कराया जा सकता है। परंतु यह प्रावधान व्यक्तिगत इच्छा, घरेलू हिंसा या घर में किसी मृत्यु के चलते हुई असामान्य स्थितियों को संज्ञान में नहीं लेता है।
  • विधेयक में बार-बार ‘महिला’ शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ है कि यह ट्रांसजेंडर इंटरसेक्स और जेंडर डायवर्स लोगों पर लागू नहीं होता है।

किसी महिला की स्वायत्तता को निर्धारित करने हेतु गर्भपात अधिकारों का बहुत महत्व है। सरकार और डॉक्टरों को यह अधिकार कैसे दिया जा सकता है कि वे किसी महिला के लिए सुरक्षित गर्भपात की अनुमति दें या न दें ? ऐसा अधिकार देने का अर्थ यही माना जाना चाहिए कि आज भी हम महिलाओं को वयस्क नहीं मानते हैं।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित धमीझाची थंगापंडियन के लेख पर आधारित। 11 फरवरी, 2021

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