गर्भपात कानून में परिवर्तन की मांग

Afeias
10 Aug 2016
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 Date: 10-08-16
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय के सामने दो मामले आए, जिसमें 24 सप्ताह के गर्भ के कारण दो लोगों की जिन्दगी दांव पर लगी हुई थी। सन् 1971 के गर्भपात कानून के अनुसार 20 सप्ताह तक के गर्भ का ही गर्भपात किया जा सकता है। इन मामलों में 24 सप्ताह का गर्भ था।

  • एक बलात्मकार पीड़िता को 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देकर उच्चतम न्यायालय ने अभूतपूर्व कदम उठाया है। इस निर्णय के पीछे मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट थी, जिसमें भू्रण में तमाम असामान्यताओं को देखते हुए याचिकाकर्ता की जिन्दगी को खतरे में बताया गया था।
  • दूसरे मामले में भी ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट की सिफारिश पर याचिकाकर्ता को 25 सप्ताह के भू्रण का गर्भपात कराने की अनुमति दी गई।
  • अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि सन् 2002 में किए गए सुधार के साथ वर्तमान गर्भपात कानून 20 सप्ताह के बाद गर्भपात पर रोक लगाने के लिए उचित है। परंतु उपरोक्त दोनों ही मामलों में वे कानून पर पुनर्विचार की मांग करते हैं।
  • उन्होंने यह भी कहा कि कई बार महिलाएं ऐसी विषम परिस्थति में फंस जाती हैं, जब उनके साथ कोई दुर्घटना हो चुकी हो और उसका परिणाम उन्हें अधिक सदमे में पहुँचा देता है। ऐसी भी स्थिति आती है कि वह उनके प्राणों के लिए घातक बन जाती है।
  • गर्भपात कानून का वर्तमान मसौदा ऐसी विषम स्थिति में फंसी महिलाओं के लिए जीवनदान जैसा है। इसमें माँ के लिए घातक बन चुके या बलात्कार के कारण ठहरे 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ के गर्भपात की अनुमति का प्रावधान है।
  • आज के चिकित्सा क्षेत्र में तकनीकी प्रगति हो चुकी है। इसके चलते आज पहले की अपेक्षा 20 सप्ताह के भू्रण की बेहतर जानकारी मिल जाती है। साथ ही अब 24 सप्ताह में गर्भपात के भी सुरक्षित उपाय आ गए हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए नये विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है।
  • सरकार को चाहिए कि इस विधेयक को शीध्रता से पारित करे, ताकि इसे कानून में परिवर्तित कर खतरे में पड़ी अनेक महिलाओं के जीवन को बचाया जा सके।

 

द टाइम्स ऑफ इंडियाके संपादकीय से

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