स्थानीय निकाय चुनावों में देरी का मामला

Afeias
03 Nov 2025
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देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलाने में जिला और ग्राम स्तरीय निकायों की अहम भूमिका है। पिछले कुछ वर्षों में नगर निगमों, जिलापरिषदों व म्राम पंचायतों के न जाने कितने ही चुनाव लंबित रहे हैं। इसको लेकर हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई है।

कुछ बिंदु –

  • भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में 42 महीने से कोई निर्वाचित स्थानीय निकाय नहीं है। जबकि नियम अधिकतर छह महीने के अंतराल की अनुमति देता है।
  • इतना ही नहीं देश के 17 राज्यों में 61% शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव लंबित हैं। बेंगलुरू में आखिरी बार 2015 में नगर निगम चुनाव हुए थे।
  • पूरे भारत में, नगर निगम चुनाव औसतन 22 महीने की देरी से होते हैं।

इसका गंभीर प्रभाव –

  • स्थानीय निकायों के चुनावों का देरी से होना स्वशासन की पूरी अवधारणा को कमजोर करता है।
  • राज्य सरकारें प्रशासकों के माध्यम से शहरों को चला सकती हैं, लेकिन लोगों की वास्तविक समस्याएं पार्षदों और नगरसेवकों के अभाव में टाउनहॉल तक नहीं पहुँच पाती।
  • भारत के शहरी निकाय संरचना से ही कमजोर हैं। उनके अधीन होने वाले कई कार्यों को राज्य सरकार निकायों को सौंप दिया जाता है।
  • सबसे बड़ी कमजोरी वित्तीय है। औसतन, नगर निगम अपने राजस्व से मात्र 30% ही अपना खर्च चला पाती हैं।
  • विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारतीय नगरों को अगले 20 वर्षों तक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए 55 अरब डॉलर की जरूरत होगी। वे अभी 18 अरब डॉलर ही जुटा पाते हैं।

अतः उच्चतम न्यायालय का उक्त कदम अगर स्थानीय चुनाव प्रक्रिया शुरू करा देता है, तो आम जन की समस्याएं जल्द निपट सकती हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 सितंबर, 2025