
सेवा में रत, भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी
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1) नियामक
2) नीति निर्माण
3) कार्यान्वयन
4) जीवन की सुगमता में सुधार
5) व्यापार में सुगमता, तथा
6) प्रशासन।
साक्ष्य आधारित आकलन –
- 1991 के आर्थिक सुधारों के साथ ही आए परिवर्तनों का श्रेय पेशेवरों, राजनीतिक नेतृत्व और सक्षम नौकरशाही को दिया जा सकता है। इन सबने भारत के आर्थिक उदारीकरण के द्वारा कम विकास दर के चक्र को तोड़ दिया। भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों ने नियमन के बुनियादी ढांचे, मौद्रिक और राजकोषीय नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- सन् 2005-06 के बाद से गरीबी में तेजी से कमी आई है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए पहचान और प्रौद्योगिकी के उपयोग ने इसके परिणामों को सकारात्मक रूप से बदल दिया है। टीकाकरण अभियान की अभूतपूर्व सफलता का श्रेय इन्हीं अधिकारियों, फ्रंटलाइन पेशेवरों को जाता है। आधार से जुड़े डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर का उपयोग और लीकेज को कम करना, गरीब जन-कल्याण योजनाओं की सफलता का ताज भी इन्हीं के सिर है।
- विश्व बैंक ने अनुपालन के बोझ को कम करने के लिए सुधार के क्षेत्रों की पहचान की है। इसी कड़ी में पुराने कानूनों को खत्म करने में आईएएस की अहम् भूमिका है।
- युवा आईएएस अधिकारियों ने आजीविका मिशन के द्वारा 13 करोड़ महिलाओं का सशक्तिकरण और 31 लाख पंचायत नेताओं के निर्वाचन को सुगम बनाया है।
- दक्षिण भारतीय राज्यों ने गरीबी को कम करने और आर्थिक खुशहाली के मामले में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। इन राज्यों में माध्यमिक, उच्चतर शिक्षा में किशोरियों के प्रतिशत का बढ़ना; स्वास्थ्य देखभाल की एक कार्यात्मक सार्वजनिक प्रणाली बनाना; प्रजनन दर में बहुत तेजी से गिरावट लाना; महिला सहायता समूह और सामाजिक पूंजी को सशक्त बनाना; बड़े पैमाने पर कौशल के माध्यम से आजीविका विविधीकरण के लिए वातावरण तैयार करना जैसे सफल कार्यों का श्रेय सिविल सेवकों को दिया जा सकता है। अन्य क्षेत्र अब इसका बड़े पैमाने पर अनुकरण कर रहे हैं।
लोकतंत्र की राजनीतिक अनुपालन की अपनी मजबूरियां होती हैं, और आईएएस इससे अछूता नहीं है। समय की राजनीतिक-संस्कृति सभी पेशेवरों को प्रभावित करती है। सभी नौकरशाहियों की तरह, भारतीय प्रशासनिक सेवा में भी अक्सर योग्यता, दृढ़ विश्वास के बजाय अनुरूपता को प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं लगाया जा सकता है कि हमारी नौकरशाही इस प्रकार की व्यवस्था से कुंठित, विफल और गैर-जवाबदेह है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमरजीत सिन्हा के लेख पर आधारित। 17 अगस्त, 2022