पुलिस कर्मियों की घरेलू नियुक्तियां बंद होनी चाहिए

Afeias
22 Sep 2022
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हमारे देश में पुलिस और सेना दो ऐसे विभाग हैं, जहाँ वर्दीधारी प्रशिक्षित कर्मियों को उच्च अधिकारियों के आवास में घरेलू काम पर लगा दिया जाता है। वे जिस सेवा के लिए वेतन और भत्ते पाते हैं, उससे जुड़ा कोई काम नहीं कर रहे होते हैं। ये कर्मी भी इसके विरोध में आवाज नहीं उठाते हैं, क्योंकि उन्हें सहज घरेलू कामों के ऐवज में नौकरी की सभी सुविधाएं प्राप्त होती रहती हैं।

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने पुलिस कर्मियों को आवासीय घरेलू कामों पर नियुक्त करने की चली आ रही औपनिवेशिक विरासत पर नाराजगी व्यक्त की है, और इसे बंद करने के लिए एक समिति भी गठित की है। न्यायमूर्ति का कहना है कि करदाताओं के धन की कीमत पर प्रशिक्षित और वेतन पाने वाले कर्मियों की घरेलू कामों के लिए नियुक्ति के विरोध में जनता को आवाज उठाने का अधिकार है।

घरेलू कामों में कर्मियों को लगाने की प्रथा को 1979 में आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया था। लेकिन फिर भी यह जारी है। सरकारी ड्यूटी से इन कर्मियों की अनुपस्थिति, बल संख्या की कमी से जूझ रही पुलिस के भार को बढ़ा रही है। इसी प्रकार से इन सेवाओं के लिए दिए गए सरकारी वाहनों के निजी उपयोग के कारण इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर को जांच के लिए किराए के वाहनों का उपयोग करना पड़ता है।

इन मामलों पर कार्यवाही के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई गई है। समिति से जल्द-से-जल्द एक्शन लेने को कहा गया है। उम्मीद की जा सकती है कि मद्रास उच्च न्यायालय के इस मामले से पूरे देश में पुलिस के कर्मियों की घरेलू नियुक्तियों और सरकारी वाहनों के निजी दुरूपयोग को बंद किया जा सकेगा। आशा है कि इस सुधार का विस्तार सेना तक भी किया जा सकेगा।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित एस.विजय कुमार के लेख पर आधारित। 17 अगस्त, 2022

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