भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में पार्श्व भर्ती (लेटरल एन्ट्री) का औचित्य

Afeias
04 Jul 2018
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Date:04-07-18

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कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय ने हाल ही में सरकार के अलग-अलग विभागों के लिए संयुक्त सचिव के दस पदों का विज्ञापन दिया है। ये पद पार्श्व भर्ती प्रक्रिया से भरे जाएंगे। भारतीय प्रशासनिक सेवा एवं क्लास वन सेवाओं को क्षेत्रों के विशेषज्ञों के लिए खोल देने का यह कदम स्वागतयोग्य है।

सरकार, भारतीय प्रशासनिक सेवा में सफल अभ्यार्थियों को केवल परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर नहीं, बल्कि तीन महीने के मसूरी प्रशिक्षण एवं अन्य अकादमिक प्रशिक्षणों के प्रदर्शनों के आधार पर रैंक और वरिष्ठता देने पर विचार कर रही है। इससे निश्चित रूप से एक जवाबदेह नौकरशाही के निर्माण में मदद मिलेगी।

इसके पीछे एक और भी तर्क दिया जा रहा है कि ऐसा करने से अभी तक अंकों के आधार पर विभाग तय करने की परंपरा के विरूद्ध, अभ्यर्थी के कौशल के अनुरूप विभाग दिया जा सकेगा। इससे सरकार की कार्यक्षमता ठोस होती जाएगी।

प्रशिक्षण के बाद विभाग नियुक्त दिए जाने के विरूद्ध तर्क दिया जा रहा है कि प्रशिक्षण अकादमी में देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं के कौशल का निर्णय करने के लिए क्या श्रेष्ठ शिक्षक होंगे? इस पक्ष को, देश के विभिन्न संस्थानों में कार्यरत श्रेष्ठ शिक्षकों की नियुक्ति से सुलझाया जा सकता है। या फिर प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षार्थियों को किसी भी तीन वर्ष पुराने आईआईएम में भेजकर उनका प्रशिक्षण करवाया जा सकता है।

सरकार के कामकाज में प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वरिष्ठ नौकरशाह प्रबंधन की नीतियों तक ही अपना उत्तरदायित्व लेते हैं। जहाँ कार्यान्वयन की बात आती है, वे इसे अपने कनिष्ठ अधिकारियों पर डाल देते हैं। इससे योजना में त्रुटियों का ठीकरा कनिष्ठ अधिकारियों के सिर फूटता है। आईआईएम बेंगलुरू ने सरकारी कामकाज में प्रबंधन की सही जानकारी की जरूरत को समझते हुए सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र को आमंत्रित किया था। परन्तु सरकारी विभागों में निष्क्रियता रही। इसे संभव बनाने के लिए अधिकारियों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

सरकारी प्रबंधन या सार्वजनिक नीति प्रबंधन को प्रबंधन संस्थानों में निचले दर्जे का माना जाता है। परन्तु कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेन्ट इस कार्यक्रम के लिए विश्व के अनेक भागों से नौकरशाहों को आकर्षित करता रहा है। मुख्यतः विकासशील देशों के लिए ऐसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन देशों द्वारा इसकी फीस के लिए आनाकानी करने पर फोर्ड फाऊंडेशन और यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट इसकी भरपाई करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे नौकरशाहों के लिए प्रबंधन सीखने के कई अवसर उपलब्ध हैं। उन्हें आगे बढ़ने की जरूरत है।

भारतीय प्रशासनिक सेवाएं देश की सर्वोत्कृष्ट प्रतिभाओं को आकर्षित करने में पीछे होती जा रही हैं। अतः सरकार के पास भी यही उपाय बचता है कि सिंगापुर की तर्ज पर सरकार देश के श्रेष्ठ प्रबंधकों को विश्व स्तरीय भुगतान पर अपने यहाँ भर्ती करे। और सरकार यही करने जा रही है।

अगर हम आर बी आई गवर्नर के रूप में, शिकागो विश्वविद्यालय में बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर रघुरमन राजन की नियुक्ति करने में सक्षम हैं, तो वह विश्व स्तरीय चयन प्रक्रिया के द्वारा अपना वित्त सचिव क्यों नहीं चुन सकती ?

‘द इकॉनामिक टाइम्स’ में प्रकाशित वी.रंगनाथन के लेख पर आधारित। 20 जून, 2018

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