शिक्षा व्यवस्था में जल्द सुधार हों

Afeias
03 Jul 2018
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Date:03-07-18

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हमारी शिक्षा व्यवस्था उस स्थिति में पहुँच चुकी है, जहाँ उसकी जवाबदेही तय करने के लिए विचार करने, संगोष्ठी करने या शोध करने का समय नहीं है। इस पर तुरन्त कार्यवाही करने का समय आ गया है। आज भी हालत यह है कि बहुत से बच्चे पढ़ नहीं रहे हैं और हमारी निष्क्रियता का हर एक क्षण किसी बच्चे की जिन्दगी के पलों को बर्बाद कर रहा है। बच्चों को स्कूल भेजने के साथ-साथ हमें उनकी सीखने की क्षमता में भी लगातार वृद्धि करनी पड़ेगी। पिछले पाँच वर्षों में शिक्षा पर अधिक खर्च करने के बाद भी, उसके परिणाम लगातार गिरावट की ओर हैं।

  • इस क्षेत्र में सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता से तात्पर्य क्या है। ऐसे कोई खास उदाहरण नहीं मिलते, जिसका अनुकरण करके हम यह समझ सकें कि बच्चों के लिए ऐसी कक्षा चलाई जाएं। न ही ऐसे उदाहरण हैं, जो यह बताएं कि शिक्षा व्यवस्था को किस एक सटीक दिशा में सुधारा जाए। सार्वजनिक शिक्षा को सुधारने का सर्वोत्तम उपाय यही है कि इस क्षेत्र का पदासीन व्यक्ति अपने आपसे पूछे कि क्या हमारे स्कूल हमारे अपने बच्चे की शिक्षा के लायक हैं?
  • शिक्षकों का प्रशिक्षण इस प्रकार से हो कि वे प्रभावशाली तकनीकों का इस्तेमाल करके कक्षा के हर बच्चे को उसकी क्षमता के अनुरूप विकसित कर सकें या सिखा सकें। अतः शिक्षकों का प्रशिक्षण व्यावहारिक स्तर पर हो। उन्हें प्रतिक्रिया भी मिले।
  • हमें उन कार्यक्रमों का आकलन करना होगा, जो अपना प्रभाव दिखा रहे हैं। केवल भेड़चाल की तरह एक से दूसरे कार्यक्रम पर चलते जाना कोई उपाय नहीं है। शिक्षा को नए तरह से परिभाषित करने वाले 10 नए कार्यक्रमों की अपेक्षा किसी एक प्रयोगसिद्ध मॉडल को हजार स्कूलों तक फैलाना ज्यादा अच्छा है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। चाहे वह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप हो, या गैर सरकारी संगठन की हो या राज्य सरकार की हो, ज्ञान के विस्तार के लिए इसे बढ़ाया जाना चाहिए।

एक बच्चे को विकसित करने में जिस प्रकार से पूरे गाँव का सहयोग लगता है, उसी प्रकार पूरे देश के एकजुट होने से बच्चों को वैसी शिक्षा मिल सकेगी, जिसके वे अधिकारी हैं।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित कृति भरूचा के लेख पर आधारित। 20 जून, 2018

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