शिक्षा के क्षेत्र में वाऊचर व्यवस्था की प्रासंगिकता

Afeias
04 Oct 2017
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Date:04-10-17

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हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में जवाबदेही की अत्यंत कमी है। यही कारण है कि शिक्षा की गुणवत्ता में लगातार गिरावट देखी जा रही है। इसमें केवल सरकारी स्कूल ही नहीं आते, बल्कि निजी या पब्लिक स्कूलों की स्थिति भी कोई खास अच्छी नहीं है। हाल ही में रेयान इंटरनेशनल स्कूल में घटी दुर्घटना इस बात की गवाह है कि फीस के नाम पर एक मोटी रकम लेने वाले ये निजी स्कूल बच्चों की सुरक्षा को लेकर कितने लापरवाह हैं। शिक्षण संस्थानों की लापरवाही या गैर-जिम्मेदारी का रवैया काफी समय से चल रहा है। यह दायित्व हमारी सरकार का है कि वह देश के बच्चों के भविष्य एवं उनकी क्षमता के सर्वांगीण विकास के लिए उचित कदम उठाए।

  • शिक्षण संस्थानों पर नकेल कसने का सबसे अच्छा तरीका सरकारी माध्यम से निधि प्रदान करना है। इसके लिए सरकार डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर या पेरेंट वाऊचर की पद्धति लागू कर सकती है। यह वाऊचर एक प्रकार से बच्चे के लिए छात्रवृत्ति जैसा होगा। वह वाऊचर की रकम से मेल खाती फीस वाले मनचाहे स्कूल में पढ़ सकेगा।
  • डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर में सरकार की ओर से शिक्षा ग्रहण करने योग्य बच्चे को एक निश्चित रकम का वाऊचर दिया जाता है। शिक्षण संस्थान में दाखिला लेने के बाद अगर बच्चा और अभिभावक उस संस्थान से संतुष्ट हैं, तो एक निर्धारित समयावधि में वह वाऊचर उन्हें स्कूल को देना होता है।
  • फिलहाल सभी सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में एकमुश्त निधि दे दी जाती है। यही इनकी गैर जवाबदेही का सबसे बड़ा कारण है।
  • जिस प्रकार से शिक्षण संस्थानों को सहायता देने की वर्तमान व्यवस्था चल रही है, उसका कोई प्रभाव देखने में नहीं आ रहा है। एक डाटा के अनुसार 2011 से 2016 तक सरकारी स्कूलों के पंजीकरण में3 करोड़ की गिरावट आई है, वहीं निजी स्कूलों में 1.7 करोड़ के आसपास की बढ़ोत्तरी हुई है।
  • वाऊचर व्यवस्था से अभिभावक को इस बात की शक्ति मिल जाएगी कि वह स्कूल के गैर जिम्मेदाराना रवैये का विरोध करते हुए अपना वाऊचर किसी दूसरे स्कूल को देकर बच्चे का दाखिला वहाँ करा दें। इस प्रकार स्कूल की धनराशि में कमी आने से वहाँ नियुक्त कर्मचारियों पर अच्छे प्रदर्शन का एक दबाव सा रहेगा क्योंकि इससे सीधे-सीधे उनके वेतन में कटौती होगी।
  • हर स्कूल ज्यादा से ज्यादा संख्या में बच्चों को अपने यहाँ लेना चाहेगा। इससे एक तो उन्हें धन अधिक मिलेगा। दूसरे, उनकी छवि अच्छी रहेगी, अभिभावक भी अधिक संख्या वाले स्कूल पर ही भरोसा करना पसंद करेंगे। इस प्रकार से एक चक्र सा निर्मित हो जाएगा, जिसमें कुल मिलाकर देश को सबसे अधिक लाभ होगा।
  • वाऊचर की राशि का आवंटन परिवार की आय के अनुसार किये जाने की व्यवस्था हो। निर्धन परिवार को अधिक राशि एवं समृद्ध परिवार को कम राशि का वाऊचर दिया जाए।वाऊचर व्यवस्था पर सरकार की ओर से दो आशंकाएं प्रकट की जा रही हैं।

(a) वाऊचर व्यवस्था का प्रलोभन देने के बावजूद प्राइवेट स्कूल, ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं जाना चाहेंगे। सरकार की यह आशंका निर्मूल लगती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2014-15 में ग्रामीण क्षेत्रों के प्राइवेट गैर-सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में फीस औसतन 292 रुपए प्रतिमाह एवं शहरी क्षेत्रों में यह 542 रुपए थी। संपूर्ण भारत के गैर सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों का आंकड़ा देखें, तो पता चलता है कि इनमें 25 प्रतिशत बच्चों ने 200 रुपए प्रतिमाह से भी कम फीस अदा की।

(b) सरकार को लगता है कि वाऊचर व्यवस्था से सरकारी स्कूलों का पत्ता लगभग साफ हो जाएगा। वास्तविकता यह है कि केन्द्र एवं राज्य सरकारें पहले ही स्कूलों में हो रहे कम पंजीकरण से परेशान हैं। इसके चलते अनेक छोटे सरकारी स्कूलों का विलय आसपास के बड़े स्कूलों में किया जा रहा है। अगर अभी यह स्थिति है, तो वाऊचर व्यवस्था के बाद स्थिति और अधिक खराब क्यों हो जाएगी।

विश्व के अनेक देश जैसे-कालंबिया, चिली, नीदरलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, अमेरीका आदि में वाऊचर व्यवस्था का सफल प्रयोग किया जा रहा है। वहाँ सभी बच्चों को स्कूल वाऊचर दिया जाता है।उलझी हुई समस्या को सुलझाने के लिए साहसिक कदम उठाने की आवश्यकता होती है। शिक्षा व्यवस्था भी एक ऊलझी हुई समस्या बन चुकी है, जिसमें सुधार के संक्रमण काल में कुछ कठिनाइयाँ महसूस की जा सकती हैं। परन्तु रास्ता उसी में से निकल सकेगा।

टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रकाशित गीता गांधी किंडन के लेख पर आधारित।

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