राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक अवधारणा

Afeias
24 Sep 2021
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Date:24-09-21

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वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। चीन की उभरती नकारात्मक शक्ति से लेकर जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद की चुनौती से लेकर कोविड-19 महामारी के चलते देशों में नई नींव पड़े बिना ही पुराने ढांचे ढह रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चर्चाओं पर गहमागहमी बनी हुई है। ऐसी स्थिति में भारत के सुरक्षा परिदृश्य पर एक नजर डाली जानी चाहिए –

  • भारत, महत्वपूर्ण आपूर्ति के लिए चीनी विनिर्माण पर बहुत हद तक निर्भर रहा है। जब भारतीय सशस्त्र बल भारत-चीन सीमा पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का सामना कर रहे थे, तब भारत को अहसास हुआ कि विदेशी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता, सर्वोच्च क्रम की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती बनी हुई है, जिसे अब और अनदेखा नहीं किया जा सकता।

भारत तब से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में घरेलू क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ा है, और एक नए दृष्टिकोण से मुक्त व्यापार समझौतों को देखना शुरू किया है।

  • देश में सैन्य नेतृत्व के विचार को विकसित किया जा रहा है। इस तर्क में राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ न केवल युद्ध और रक्षा, बल्कि वित्तीय स्वास्थ, खाद्य, ऊर्जा, सूचना और पर्यावरण सुरक्षा भी शामिल है। अतः राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से एक सशस्त्र संघर्ष को देखने की बजाय सरकार के सभी क्षेत्रों के विकास हेतु एक संपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
  • महामारी के बाद के परिदृश्य में राष्ट्रीय संसाधनों पर गंभीर दबाव बना हुआ है। इसे देखते हुए नीति निर्माताओं को सैन्य और नागरिक क्षेत्रों के बीच तालमेल को रेखांकित करना महत्वपूर्ण होगा। सशस्त्र बलों में निवेश, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देता है। सैन्य उत्पादों की मांग और परिवहन व स्वदेशी उपकरणों के स्वदेशीकरण से उद्योगों को प्रोत्साहन मिलता है। राष्ट्रीय आपदा के दौरान सेना को प्रदत्त ये संसाधन ही काम आते हैं।

सेना के नेतृत्व में केवल सशस्त्र कार्यवाही पर ध्यान केंद्रित करने की तुलना में, राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक अवधारणा को बनाए रखने का विचार अतिउत्तम है। जैसे-जैसे दुनियाभर के राष्ट्र अपने लक्ष्यों, तरीकों और साधनों को अधिक संतुलन में लाने के लिए अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को स्वीकार करेंगे, संसाधन आवंटन के प्रश्न और भी अधिक विवादास्पद हो जाएंगे और नीति निर्माताओं को देश के विभिन्न उपकरणों की भूमिकाओं के बारे में अधिक रचनात्मक रूप से सोचने की आवश्यकता होगी। अतः यह सही समय है, जब भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा की सोच में पीछे न रहकर कदमताल करना चाहिए और वह ऐसा कर भी रहा है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित हर्ष वी पंत के लेख पर आधारित। 10 सितंबर,2021