राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का ब्लूप्रिंट

Afeias
20 Jun 2019
A+ A-

Date:20-06-19

To Download Click Here.

1992 में अमेरिकी सरकार के चिंक टैंक जॉर्ज तन्हम ने अपने एक लेख में लिखा था कि ‘‘भारत का एलिट वर्ग, राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में बहुत व्यवस्थित और सामंजस्यपूर्ण तरीके से विचार नहीं करता है।’’ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह पूछना अनुचित नहीं लगता कि क्या वाकई देश के नागरिक, सुरक्षा के बारे में सुसंगत, व्यवस्थित और सामंजस्यपूर्ण तरीके से सोच पा रहे हैं या हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा तदर्थ व्यवस्थाओं और आधे-अधूरे ज्ञान पर चलती चली जा रही है। या फिर हमारी सरकार सुरक्षा रणनीति को महज घोषणाओं का चोला पहनाकर एक ढोंग रच रही है?

महत्वपूर्ण मुद्दे

सत्य जो भी हो, लेकिन भारत की सुरक्षा रणनीति में कुछ खास कमियां हैं, जिन पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

  • राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थाओं की कार्यप्रणाली के पुर्नोत्थान की जरूरत है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का गठन 1998 में किया गया था। लेकिन इसकी बैठकें नहीं होती हैं। इसका कारण चाहे जो भी हो, परन्तु सुरक्षा पर बनी केबिनेट समिति के लिए यह सलाहकार संस्था है। अतः इसे उचित महत्व दिया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद को नए तरीक से निर्मित किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा में उसके महत्व को देखते हुए, उसके कानूनी अधिकार कुछ भी नहीं हैं। वर्तमान सरकार ने उसे केबिनेट मंत्री का दर्जा देकर इस मामले में एक कदम आगे बढ़ाया है। संसद के प्रति उत्तरदायित्व को निभाने की उसकी क्षमता की परख होना बाकी है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा योजना में मूलभूत संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है। इसके लिए हाल ही में गठित सुरक्षा योजना समिति का उदाहरण लिया जा सकता है। इसका गठन भारत की सुरक्षा तैयारी और प्रणाली को प्रोन्नत करने के लिए किया गया है। इस समिति के पास बहुत अधिक उत्तरदायित्व हैं। साथ ही यह एक सलाहकार संस्था भी है। हमारी सशस्त्र सेना के बीच इस बात को लेकर आशंका व्यक्त की है कि चूंकि सुरक्षा योजना समिति की अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को करनी है, इसलिए सरकार ने रक्षा स्टॉफ के प्रमुख की नियुक्ति की ओर से मुँह मोड़ रखा है।

जनरल हुडा का दस्तावेज

राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की कमियों को देखते हुए इस वर्ष के प्रारंभ में कांग्रेस ने सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल हुडा से एक रणनीतिक दस्तावेज तैयार करने को कहा था। कांग्रेस ने इसे घोषणा पत्र में शामिल करते हुए कहा था कि सत्ता में आने पर वह अंतरराष्ट्रीय परामर्श के बाद इस दस्तावेज को नीति का हिस्सा बनाएगी।

दस्तावेज की कुछ मुख्य बातें

  • इस दस्तावेज में सबसे महत्वपूर्ण वाक्य है ‘‘हम तब तक पूर्ण सुरक्षा प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक कि हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग भेदभाव, असमानता, अवसर की कमी, जलवायु परिवर्तन, तकनीकी अवरोध, ऊर्जा और जल की कमी से पीड़ित है।’’
  • दस्तावेज में राष्ट्रीय सुरक्षा की अत्यंत व्यापक परिभाषा दी गई है, जिसमें नई तकनीकी से लेकर सामाजिक अशांति और असमानता को भी शामिल किया गया है।
  • जहाँ अभी तक राष्ट्रीय सुरक्षा को मात्र सैन्य मामला समझा जाता था, वहाँ जनरल हुडा की रिपोर्ट में इसे अलग सोच के साथ समावेशी बना दिया गया है। इसे देश के प्रत्येक नागरिक से जोड़ दिया गया है।
  • वैश्विक मामलों में हमारा सही स्थान, ‘‘सुरक्षित पड़ोस’’, राष्ट्रीय संघर्षो का शांतिपूर्ण समाधान’’, ‘‘लोगों की सुरक्षा’’ और ‘‘अपनी क्षमता को मजबूत करना’’, जैसे कुछ मुख्य विन्दु है, जो दस्तावेज के सुविचारित प्रयोजन को स्पष्ट करते हैं।
  • इसमें कहा गया है कि, ‘‘जल, थल और वायुसेना की शक्तियों को एकीकृत रूप से युद्ध की तैयारी को अपने वर्तमान और भविष्य के स्वरूप से जोड़कर व्यापक विचार करना चाहिए।’’
  • साथ ही डी आर डी ओ के घरेलू सैन्य उत्पादन के क्षेत्र में सांस्कृतिक परिवर्तन की आवश्यकता है।
  • दस्तावेज में सरकार की साइबर कमांड के स्थान पर रक्षा साइबर एजेंसी की स्थापना के विचार का खंडन किया गया है।

कश्मीर मुद्दे पर भी जनरल हुडा, वर्तमान नीतियों से असंतोष प्रकट करते हुए व्यक्त करते हैं कि ‘‘कट्टरता से निपटने के लिए सरकार को गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। ऐसे सुनियोजित कार्यक्रम बनाने की जरूरत है, जिसमें धार्मिक नेता, शिक्षाविदों, नागरिक समितियों, पारिवारिक समूहों एवं आत्मसमर्पण कर चुके आतंकवादियों को भी शामिल किया जाए।’’

उम्मीद की जा सकती है कि यह दस्तावेज भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सोच को अधिक व्यवस्थित, दृढ़ और व्यापक बनाने में सफल रहेगा।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित हैप्पीमन जैकब के लेख पर आधारित। 22 मई, 2019

Subscribe Our Newsletter