राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की राह की कठिनाइयाँ

Afeias
23 Feb 2018
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Date:23-02-18

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सरकार ने बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की घोषणा की है। ऊपर से देखने और सुनने पर तो योजना काफी आकर्षक और लाभदायी लगती है। परन्तु यदि इसको गहराई से देखें, तो पता चलता है कि योजना के मंतव्य और वास्तविक निधि आवंटन में अच्छा खासा अंतर है। यह अंतर इस योजना के प्रति आशंकाएं अधिक पैदा करता है, जबकि आशा की एक ही किरण दिखाई पड़ती है।

इस योजना को पूरा करने के लिए आपूर्ति की कमी वाले क्षेत्रों में निजी निवेश की आवश्यकता होगी। एक अनुमान के अनुसार इसकी पूर्ति में लगभग पाँच वर्ष लग जाएंगे। इसमें भी संदेह है, क्योंकि अस्पतालों को लाभ तो डायग्नॉस्टिक सेंटर और दवाइयों से मिलता है, मरीजों से नहीं। अतः मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए हर हाल में निवेश को बढ़ाना ही होगा। लेकिन अगर यह केवल निजी क्षेत्र में बढ़ता है, तो मरीज का खर्च भी बढ़ेगा।

दूसरे, निजी अस्पतालों में 30 प्रतिशत बिस्तर गरीबों को दिए जाने की सरकारी योजना को प्रभावशाली ढंग से अमल में लाना इस योजना का उद्देश्य है। इसका लाभ अधिकतर शहरी क्षेत्र में रहने वाले गरीबों को ही मिलेगा। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से पता चलता है कि इस योजना के अंतर्गत जिन गरीबों का निजी अस्पतालों में इलाज किया जाता है, उनसे किसी-न-किसी अप्रत्यक्ष तरीके से इसकी कीमत वसूल की जाती है।

तीसरे बिन्दु के अनुसार लगभग 10 करोड़ परिवारों को स्वास्थ्य राशि के प्रीमियम के रूप में 1200 रुपये प्रति परिवार दिए जाएंगे। दक्षिण भारत के कई राज्य पहले ही इस प्रकार की योजना चला रहे हैं, जिसमें 2 लाख तक की राशि के ईलाज की सुविधा है। परन्तु वास्तव में मात्र 50,000 रूपये से भी कम की सुविधा दी जाती है। यही हाल उत्तर भारतीय राज्यों में भी होगा। इससे अस्पतालों को ही लाभ पहुँचेगा।

सरकार का प्रति 5,000 की जनसंख्या पर एक स्वास्थ्य केन्द्र खोलने का लक्ष्य है। ऐसी आशा की जा रही है कि इससे अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या कम हो जाएगी। सरकार का ऐसा लक्ष्य कोई नया नहीं है। स्वतंत्रता के बाद से लगभग सभी सरकारें ऐसा करती आ रही हैं। स्वास्थ्य केन्द्रों के नाम पर 2,000 करोड़ की राशि बहुत कम है। इस राशि से पहले से काम कर कर रहे स्वास्थ्य केन्द्रों के भी पांचवें भाग को ही लाभ पहुँचेगा। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के साथ सरकार की तीन स्तरीय प्राथमिक स्वास्थ्य सुरक्षा योजना में मरीजों को निर्धारित 30 सेवाओं का पांचवा भाग ही उपलब्ध होता है।

ब्राजील, जापान, चीन और श्रीलंका जैसे देशों ने स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश करके रोगों में कमी की है, जीवन-काल को बढ़ाने में सफलता प्राप्त की है। इन सबके माध्यम से इन देशों ने एक प्रकार से बचत की है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना से एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा जा सकता है। अब सरकार की भूमिका सेवा प्रदाता से बदलकर धन मुहैया कराने वाले की कही जा सकती है। सेवा देने और धन प्रदान करने के लिए पृथक निकायों के होने से खर्च बढ़ेगा। परन्तु इससे दोनों निकायों की जवाबदेही भी बढ़ेगी।

योजना को अगर गलत तरीके से बनाया और लागू किया जाएगा, तो यह सरकार के लिए सफेद हाथी पालने जैसा हो जाएगा। इसलिए इसके तमाम पक्षों पर विस्तृत बहस किए जाने की आवश्यकता है।

“द हिन्दू“ में प्रकाशित के.सुजाता राव के लेख पर आधारित।

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