राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में महिला नसबंदी

Afeias
28 Sep 2016
A+ A-

3079ac4a00000578-3412578-image-m-73_1453499273457Date: 28-09-16

To Download Click Here

      सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में (सितम्बर 2016) केंद्र सरकार को महिलाओं में जबर्दस्ती की जाने वाली नसबंदी को बंद करने को कहा है। इससे पहले भी देविका बिस्वास की जनहित याचिका के संबंध में न्यायालय ने सरकार को इससे जुड़े कई निर्देश दिए हैं। अगर ऐसा होता है, तो यह महिलाओं के लिए अत्यंत कल्याणकारी होगा।

कुछ तथ्य :

  • गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग ने पाया कि भारत में गर्भनिरोध के कुल उपायों में से 65 प्रतिशत महिला-नसबंदी को ही चुना जा रहा है। विभाग ने गर्भनिरोध के तरीके के बारे में महिलाओं की पसंद एवं उन पर थोपे जाने वाले तरीकों के बीच की दूरी पर भी प्रकाश डाला।
  • जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी के तरीके को लागू करने वाली सरकारों ने इस बात को भी नजरदांज कर दिया है कि ‘‘महिला सशक्तिकरण’’ के चलते अब बहुत सी  महिलाएं शिक्षित एवं जागरुक हो चुकी हैं। उनकी जागरुकता के कारण प्रजनन दर वैसे ही कम हो गई है।
  • नसबंदी करवाने वाली महिलाओं की सुरक्षा सबसे अहम् मुद्दा है और न्यायालय के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए केंद्र सरकार को इस पर तुरंत ध्यान दे ना चाहिए।
  • पिछले तीन वर्षों में नसबंदी के दौरान मरने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा रही है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और केरल में नसबंदी के शिविरों में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इन तीनों राज्यों में हुई इस लापरवाही के लिए उक्त राज्य के उच्च न्यायालयों को इस मामले के जाँच के आदेश दिए हैं। न्यायालय के इस कदम से यह स्पष्ट संदेश मिलता है कि स्वास्थ्य का अधिकार जीवन के अधिकार से अलग नहीं है और अब केंद्र सरकार को भी अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को इसी दिशा में आगे बढ़ाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों से पड़ने वाले प्रभाव :-

  • अब न्यायालय के निर्देशानुसार राज्य एवं क्षेत्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त चिकित्सकों एवं गुणवत्ता आश्वासन समिति को नसबंदी संबंधी गतिविधियों की पूरी जानकारी इंटरनेट पर अपलोड करनी होगी। इससे आम जनता को इसकी पूरी खबर होगी।
  • इन गतिविधियों के दौरान हुई क्षति एवं उसकी पूर्ति संबंधी सूचना भी प्रकाशित करनी होगी। इससे नसबंदी के दौरान होने वाले नुकसान के लिए महिला या उसके परिवार को पर्याप्त क्षतिपूर्ति मिल सकेगी।
  • सबसे बड़ी बात यह है कि सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से जो महिलाएं युवावस्था में जनन नहीं कर पाती हैं, उन्हें अपने अधिकार सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी और वे बड़ी उम्र में भी मातृत्व का सुख ले सकेंगी।

शिक्षा, रोजगार एवं गर्भनिरोध के बारे में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखकर ही महिला सशक्तिकरण के सही लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। ये सभी राष्ट्रीय नीतियों के हिस्से होने चाहिए। धन का लालच देकर महिलाओं को नसबंदी कराने के लिए प्रेरित करना किसी भी तरह से मान्य नहीं है।

द हिंदूके संपादकीय पर आधारित।

Subscribe Our Newsletter