क्वाड आईटूयूटू
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हाल ही में आईटूयूटू या इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, भारत और अमेरिका का एक नया चतुर्भुज बनाया गया है। कई मायनों में यह आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ बने चुतुर्भज या क्वाड से बेहतर कहा जा सकता है। इसे कुछ बिंदुओं में समझने का प्रयत्न करते हैं –
- चारों ही देश अपने आप में द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदार हैं।
- इस क्वाड में अमेरिका सूत्रधार है। बाकी के तीनों देश उसे वास्तविक और जमीनी स्तर पर रखेंगे।
- जल, ऊर्जा, परविहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा जैसे 21वीं सदी के छः प्रमुख क्षेत्रों को इस चतुर्भुज का मुख्य मुद्दा बनाया गया है।
- कनेक्टिविटी, परिवहन और ‘फूड कॉरिडोर’ के माध्यम से दक्षिण एशिया, खाड़ी और मध्यपूर्व में महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं की आवाजाही को सभी तरह से सक्षम करने का लक्ष्य है। इसे भूमध्य और दक्षिणी यूरोप तक विस्तृत किया जा सकता है। एक उदाहरण एतिहाद रेल परियोजना है, जो 2030 तक सभी खाड़ी देशों को अपने भागीदारों के साथ जोड़ने का वादा करती है। इससे भारत के लिए अधिक बाजार खुल सकते हैं।
- नया क्वाड न केवल व्यापार बाधाओं को कम करने, बल्कि उत्पादन और व्यापार के लिए मानकों और बेंचमार्क के सामंजस्य के लिए काम करेगा। यह भारतीय कृषि निर्यात के लिए महत्वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी से लेकर भोजन और वित्त तक की कई बहुपक्षीय व्यवस्थायें नए नियम बनाने वाली तालिका में हैं।
- इस समूह के माध्यम से क्षेत्र में एकीकरण प्रबल हो सकता है। अब भारत भी अब्राहम समझौते के अवसरों का अधिकतम लाभ उठाने की आशा कर रहा है। अमेरिका, इजरायल के एकीकरण में महत्वपूर्ण और केंद्रीय भूमिका निभा सकता है।
- सामरिक दृष्टि से देखें, तो यह समझौता दुनिया के सबसे बड़े हितधारकों को एक साथ लाता है, और दशकों में पहली बार, मध्यपूर्वी क्षेत्र किसी नई वैश्विक समस्या का करण नहीं बना है। कुछ समय बाद, भारत ईरान को इस समूह में लाने पर विचार कर सकता है।
- चीनी घुसपैठ को रोकना- इस शिखर सम्मेलन के साथ ही क्षेत्र में बढ़ते चीन के अधिपत्य पर लगाम लगनी शुरू हो गई है। 2021 में इजराइल ने हाइफा में बे पोर्ट के परिचालन अधिकार एक चीनी कंपनी को बेच दिए थे, जिसको अमेरिका के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। इसके चलते इस क्षेत्र में चीन को अपने गुप्त अभियान बंद करने पड़े। खाड़ी और मध्यपूर्वी देशों को भारत और अमेरिका की तुलना में चीन पर अधिक भरोसा रहा है। इस समूह के गठन के बाद वे अब भारत और अमेरिका की चीन के साथ चल रही तनातनी के कारण चीन को प्राथमिकता देने से पहले कई बार सोचने पर मजबूर होंगे।
- दूसरी ओर, इस समूह को एक तरह से रूस का समर्थन प्राप्त है। चार सदस्यों में से तीन के मास्को के साथ सामान्य संबंध हैं, और उन्होंने रूस पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिकी दबाव का विरोध किया है।
यह समूह हर तरह से भारत के लिए हितकारी है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में यह कई क्षेत्रों में समूह के देशों की नीतियों को निर्धारित करने में मददगार सिद्ध हो सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित इंद्राणी बागची के लेख पर आधारित। 16 जुलाई, 2022
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