प्रशांत द्वीप देशों तक भारत की स्मार्ट पहुंच हो
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हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने पापुआ न्यू गिनी की यात्रा की है। प्रशांत महासागर के द्वीप देशों तक पहुंच, भारत के लिए महत्वपूर्ण होती जा रही है। इसका कारण इन देशों पर बढ़ता चीन का प्रभाव है।
गत वर्ष चीन ने सोलोमन द्वीप के साथ सुरक्षा समझौता किया है। अगर चीन इन द्वीपों पर अपना प्रभाव जमाने में सक्षम हो जाता है, तो दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के लिए यह एक गंभीर रणनीतिक चुनौती उत्पन्न करेगा है।
यही कारण है कि पेसिफिक आईलैण्ड कंट्रीज़ या पीआईसी में भारत और अमेरिका का साथ आना अच्छा है। अमेरिका इन द्वीपों को सुरक्षा गारंटी दे सकता है। जबकि भारत एक विश्वसनीय भागीदार बन सकता है। भारत प्रशांत द्वीप सहयोग शिखर सम्मेलन के तीसरे फोरम में मोदी की 12 सूत्रीय कार्ययोजना की घोषणा का इसी पर जोर था।
इन द्वीपों की मांग पर आधारित सहयोग मॉडल बनकर भारत इनकी मदद कर रहा है।
भारत और इन द्वीपों के बीच की भौगोलिक नजदीकी भी संबंध मजबूत करने का काम करती है। उधर चीन के पास धन है, और दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जो लंबी अवधि के रणनीतिक संघर्ष के लिए तैयार है। इसकी मदद से चीन इन द्वीपों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। श्रीलंका का उदाहरण हमारे सामने है। चीनी ऋण के बोझ से दबे होने के बावजूद श्रीलंका ने मजबूरी में चीनी तेल और गैस पर ही अपनी निर्भरता दिखाई है।
इस प्रकार, यदि भारत को चीनी प्रभाव का मुकाबला करना है या बीजिंग पर रणनीतिक दबाव भी डालना है, तो उसे महत्वपूर्ण भागीदारी देशों तक आउटरीच की गति को बनाए रखना होगा। लंबी अवधि में, भारत ने अपनी विदेश नीति में एक मजबूत समुद्री घटक को शामिल भी कर लिया है। इसके साथ ही एक आधुनिक भारतीय नौसेना की आवश्यकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 24 मई, 2023