फसल विविधीकरण
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बहुफसली खेती के फायदे –
1) एक से अधिक फसलों की खेती के मॉडल में एक फसल जिन पोषक तत्वों को लेती है, दूसरी फसल उन पोषक तत्वों को मिट्टी में वापस डाल देती है। इससे खेत की मिट्टी पोषक तत्वों से समृद्ध बनी रहती है।
उदाहरण – फलियाँ और दालें मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर बनाए रखती हैं।
2) बहुफसली खेती कीटों के प्रकोप को भी रोकती है।
उदाहरण – टमाटर के साथ गेंदा फूल उगाया जा सकता है।
3) बहुफसली खेती कीटनाशक, रासायनिक उर्वरकों और पानी की खपत को कम करती है। इससे खेती की कुल लागत में कमी आती है।
4) फसल विविधीकरण पानी की खपत को कम करता है और इस तरह से भूगर्भ जल का ज्यादा दोहन नहीं होता।
5) कुछ फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सहन नहीं कर पातींऔर नष्ट हो जाती हैं। वहीं कुछ फसलें असमय बारिश, ओलावृष्टि व तेज गर्मी को झेल जाती हैं। इस तरह बहुफसल से विपरीत मौसम की वजह से सारी फसलों के खराब होने का खतरा कम हो जाता है।
6) फसल विविधीकरण कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम करने में मदद करता है। अगर एक सीजन में एक फसल की अच्छी कीमत नहीं मिलती, तो कृषक दूसरी फसल से आय हासिल कर सकता है।
बहुफसली खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की भूमिका –
1) कम लोकप्रिय फसलों का बाजार सीमित है। ऐसे में सरकार को ढांचागत सुविधाएँ और बाजार उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे किसान अपने उत्पाद सही बाजार में पहुँचा सकें।
2) सरकार स्थानीय स्तर पर भी इकोसिस्टम बना सकती है, जहाँ स्थानीय बाजार में ताजा उत्पादों की खरीदारी और बिक्री आसानी से हो सके।
उपभोक्ताओं की भूमिका –
1) फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए उपभोक्ताओं को भी अपने खान-पान में बदलाव करना होगा। हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि हम अपनी थाली में कई तरह के अनाज, दालों और सब्जियों को जगह दें। इससे स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।
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