जी.एम. फसल

Afeias
04 May 2016
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Date: 04-05-16

Agroman-Green-Wheatभारत जैसे विकासशील और विषाल जनसंख्या वाले देश में खाद्य आपूर्ति और किसानों को होने वाले प्रतिवर्ष नुकसान से बचाने के लिए नई तकनीकों को अपनाने की बहुत जरूरत है। ऐसी ही तकनीक में जी.एम. फसल का नाम आता है।

क्या है जी.एम. फसल?
जी.एम., खेती में ऐसी तकनीक है, जिसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक के प्रयोग से फसल के डी एन ए को विकसित किया जाता है। सामान्यतः इसमें पौधे की ऐसी किस्म को विकसित किया जाता है, जो प्राकृतिक तौर पर विकसित नहीं हो पाती।
इसे बढ़ावा क्यों दिया जाना चाहिए?

  • इस फसल का लाभ न केवल किसानों बल्कि उपभोक्तओं को भी है।
  • इससे उत्पादकता 20-30 प्रतिशत बढ जाती है। खेती से होने वाली कुल आय में 1000 करोड़ का लाभ हो सकता है।
  • भारत की आयातित खाद्य तेल पर निर्भरता कम हो जाएगी।
  • इससे उत्पाद की कीमत भी कम हो जाएगी।
  • फसल में पोषक तत्वों की बढ़ोत्तरी होगी।
  • जी.एम. फसल एक तरह से कीटनाशकों के प्रयोग को बहुत हद तक कम कर सकती हैं। सामान्यतः बैंगन की फसल में 30-35 बार कीटनाषक डाले जाते हैं। परंतु जी.एम. फसल में कीटनाशकों का छिड़काव घटकर मात्र 5 बार तक आ जाएगा।
  • भारत में जब से जी.एम. कपास की खेती शुरू हुई है, फसल की भरमार की वजह से हमारा देष कपास को आयात करने की जगह निर्यात करने लगा है।
    यह जानना जरूरी है कि हरित क्रांति के पिता कहे जाने वाले नॉर्मन बॉरलॉग तथा ग्रीनपीस के निर्माता डॉ. पैट्रिक मूर जैसे वैज्ञानिकों ने जी.एम. फसल का जबर्दस्त समर्थन किया है। किसानों के नेता चेंगल रेड्डी ने भी मांग की है कि जी.एम. कपास की तर्ज पर यदि सरसों और बैंगन की फसल उगाई जाए, तो यह क्रांतिकारी सिद्ध होगा और किसानों को बहुत लाभ होगा।

विरोध के कारण-

  • कई भारतीय एन जी ओ इसे स्वास्थ्य की दृष्टि से असुरक्षित बता रहे हैं। गौर करें तो अमेरिका में कई वर्षों से बड़े पैमाने पर इसी खाद्य सामग्री का उपयोग हो रहा है, जिसका कोई दुष्प्रभाव अभी तक सामने नहीं आया।
  • भारत जी.एम. सोयाबीन वाले खाद्य तेलों का लगातार आयात और उपयोग कर रहा है। भारत में ही कपास के बीज के तेल का भारी मात्रा में उपयोग किया जा रहा है। इनसे अभी तक कोई हानि नहीं हुई है।
  • मॉनसॉन्तो जैसी कुछ बड़ी कंपनियां जी.एम. फसल पर अपना एकाधिकार स्थापित करके उसे ऊँचे दामों पर बेचना चाहती हैं। इसके लिए वे कोर्ट और सामाजिक कार्यकर्ताओं का सहारा लेकर इसका विरोध कराती हैं।
    अनेक वैज्ञानिक तथ्यों से यह सिद्ध हो चुका है कि जी.एम. फसल किसी भी तरह से हानिकारक नहीं हैं।

 

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में
प्रकाशित  एक लेख पर आधारित

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