भारत में बढ़ता मोटापा
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हाल ही में यूनिसेफ की बाल पोषण पर रिपोर्ट आयी है। इसका नाम ‘फीडिंग प्रॉफिट : हाउ फूड एनवायरनमेंट्स आर फेलिंग चिल्ड्रन’ है।
इससे जुड़े कुछ बिंदु –
- इसमें पाया गया है कि जहाँ अभी तक बच्चों में कुपोषण से जुड़ी कम वजन की समस्या थी, वहीं यह मोटापे में बदल गई है। यह प्रवृत्ति बच्चों के सही चीजें पर्याप्त मात्रा में न खाने से पनप रही है।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह ज्यादा देखने में आ रहा है।
- अगर पर्याप्त नियंत्रण रखा गया, तो 2030 तक भारत में दुनिया के 11% मोटे लोग रह रहे होंगे।
- भारत में मोटापे की वृद्धि आर्थिक और बाजार बढ़ने के साथ आई है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 भी इस समस्या के लिए अतिप्रसंस्कृत (प्रोसेस्ड) खाद्य पदार्थों की बढ़ती बिक्री को जिम्मेदार मानते हैं।
- फल और सब्जियों की बढ़ती कीमतें, उच्च वसा और चीनी वाली फास्ट फूड संस्कृति तथा युवाओं की घटती शारीरिक गतिविधि से मोटापा बढ़ता जा रहा है।
- सरकार को इस पर नियंत्रण रखने के लिए स्कूलों में पहुंच बनानी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ज्यादा वसा वाले खाद्य पदार्थ स्कूलों में न बेचे जाएं। न ही मध्यान्ह भोजन में वे शामिल हों।
- खाद्य सब्सिडी में बदलाव करके अति प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग की लागत को कम करने वाले अनाजों में परिवर्तन किया जाना चाहिए।
पैष्टिक भोजन की आसान पहुँच बनाना बहुत जरूरी है। अन्यथा देश का जनसांख्यिकीय लाभांश खतरे में पड़ सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 सितंबर, 2025