नेट जीरो लक्ष्य की ओर बढ़ता भारत

Afeias
27 Apr 2021
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Date:27-04-21

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जलवायु परिवर्तन के दौर में लगभग 120 देशों ने 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। तीसरा बड़ा उत्सर्जक देश होने के नाते भारत पर भी अपनी प्रतिबद्धता दिखाने का दबाव बढ़ता जा रहा है।

नेट जीरो या कार्बन तटस्थता का अर्थ किसी देश द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा के बराबर ही वायुमंडल से उसको कम करना होता है। इस प्रकार से प्रत्येक देश, वायुमंडल को संतुलित रखकर उसका तापमान बढ़ने से रोकते हैं। जलवायु परिवर्तन पर बने सरकारी पैनल के अनुसार, वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 से. तक सीमित करने के लिए, वैश्विक नेट कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन को 2030 तक 45% तक कम करना होगा। तब जाकर 2050 तक हम नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।

भारत को क्या करना चाहिए ?

  • भारत को विकसित देशों के बनाए लक्ष्यों का दबाव नहीं रखना चाहिए। बहुत अधिक उत्सर्जन करने वाले चीन जैसे देश यदि अपना लक्ष्य 2050 रखते हैं, तो वैश्विक औसत से प्रति व्यक्ति कम उत्सर्जन करने वाले भारत जैसे देश के लिए 2040 तक लक्ष्य पूरा करने का दबाव क्यों हैं ?
  • नेट जीरो के लक्ष्य में लचीलापन रखा जाना चाहिए। नई विघटनकारी तकनीक के माध्यम से हम काफी कम कीमत पर डिकार्बनाइज करने की स्थिति में आ जाएंगे। यदि सौर ऊर्जा का उदाहरण लें , तो हम देखते हैं कि 2010 में 20 गीगावॉट के मामूली लक्ष्य से आज हम 2030 तक 450 गीगावॉट का लक्ष्य रखने की हिम्मत रख रहे हैं। एक दशक में यह 15 गुना की वृद्धि को दर्शाता है। अतः देशों को प्रत्येक दस वर्ष में अपने लक्ष्यों की प्रतिबद्धता का आकलन कर लेना चाहिए।
  • नेट जीरो के अंतिम लक्ष्य के साथ ही प्रत्येक पांच वर्ष में नेशनली डिटरमाइन्ड कॉन्ट्रिब्यूशन्स के लक्ष्यो के माध्यम से आगे बढ़ा जा सकता है।
  • नेट जीरो की न्यायिक बाध्यता होनी चाहिए। इस हेतु दस से भी कम देशों ने कानून बनाए हैं। बाकी देशों ने संकल्प या नीतीगत वक्तव्य दिए हैं। इसके साथ ही कानूनी बाध्यता भी होनी चाहिए।
  • नेट जीरो का लक्ष्य स्वयं में सकारात्मक और समान सामाजिक और आर्थिक परिणामों की गारंटी नहीं देगा। अगले दो-तीन दशकों में जीवाश्म ईंधन पर आश्रित देशों के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ने वाला है। अतः एक अंतरराष्ट्रीय ढांचे के द्वारा नेट जीरो लक्ष्य को बदलाव की स्थितियों से तालमेल बैठाने का समय दिया जाना चाहिए।

जलवायु परिर्वतन से जुड़े पेरिस समझौते पर भारत की स्थिति बहुत अच्छी है, क्योंकि भारत अपने लक्ष्यों पर गंभीरता से आगे बढ रहा है। संभव है कि वह अगले 3-4 दशकों में नेट जीरो के लक्ष्य को प्राप्त भी कर ले। भारत के पास अवसर है कि वह वैश्विक जगत में इस हेतु एक निष्पक्ष, महत्वाकांक्षी और प्रभावशाली जनमत तैयार करे, और अपने एजेंडे पर टिका रहे।

दूसरे, भारत को प्राकृतिक रूप से जीवाश्म ईंधन प्राप्त है, और यह हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर निर्भरता को बढ़ाया जाना श्रेयस्कर होगा, लेकिन तुरंत ही नहीं। हमारे प्रधानमंत्री ने भी हाल ही में कहा है कि भारत की निर्भरता कोयलाजनित ऊर्जा पर रही है, और इसे पूरी तरह से बदला नहीं जा सकता। हमें देश के विभिन्न आयामों को संभालते हुए जलवायु परिवर्तन से बचाव की दिशा में आगे बढ़ना है। इसके लिए वैश्विक समुदाय के समक्ष अपनी स्थितियों और शर्तों को रखते हुए हमें सक्रिय भूमिका निभानी है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चंद्रभूषण के लेख पर आधारित। 3 अप्रैल, 2021

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