फिलिस्तीनी-इजराइल संघर्ष और भारत

Afeias
09 Jun 2021
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Date:09-06-21

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पिछले दिनों हुए इजराइल-फिलिस्तीनी संघर्ष ने एक बार फिर से विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस संघर्ष की शुरूआत जमीन पर कब्जे को लेकर हुई थी। 1948 के अरब-इजराइल युद्ध के बाद पवित्र भूमि को इजराइल राष्ट्र, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में विभाजित किया गया था। इसके परिणामस्वरूप अरब राज्यों ने इजराइल पर आक्रमण कर दिया था। युद्ध के अंत में संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना से भी अधिक भूमि पर इजराइल ने अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ने लगे थे। 1967 में छः दिनों का प्रसिद्ध युद्ध हुआ, जिसमें इजराइली सेना ने फिलस्तीन के प्रमुख स्थानों पर अधिकार कर लिया। इसके बाद से ही फिलस्तीन चाहता है कि इजराइल 1967 से पूर्व की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का सम्मान करे।

संघर्ष में भारत की भूमिका

स्वतंत्रता के बाद से भारत ने इजराइल के साथ कोई कूटनीतिक संबंध नहीं रखे थे। सन् 1992 में पहली बार दोनों देशों के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध बने थे। दूसरी ओर, 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के विभाजन के विरूद्ध मतदान किया था। यह पहला गैर अरब देश था, जिसने वर्ष 1974 में फिलस्तीनी जनता के कानूनी प्रतिनिधि के रूप मे फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता दी थी। भारत ने 2015 में सदस्य राज्यों के ध्वज की तरह अन्य प्रेक्षक राज्यों के साथ संयुक्त परिसर में फिलिस्तीनी ध्वज लगाने का समर्थन किया था।

2017 में प्रधानमंत्री मोदी इजराइल की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने थे। 2018 में इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भारत की यात्रा की। इस प्रकार भारत-इजराइल संबंधों में एक प्रकार की घनिष्ठता की शुरूआत हुई।

भारत का संतुलित कदम –

हाल ही में हुए इजराइल-फिलस्तीनी संघर्ष के मद्देनजर भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने मित्र इजराइल को नाराज किए बिना ही फिलस्तीन के प्रति अपने परंपरागत समर्थन को जारी रखा है। भारत ने गाजा पट्टी द्वारा किए गए रॉकेट हमलों की निंदा की। लेकिन 10 मई से किए जा रहे इजराइली हमलों के लिए सीधे-सीधे कुछ नहीं कहा है। भारत ने येरूसलम की वर्तमान स्थिति पर भी कोई टिप्पणी नहीं की है। भारत ने दोनों देशों के संघर्ष के बीच अपनी स्थिति को बहुत संतुलित रखने का प्रयास किया है। परंतु इजराइली प्रधानमंत्री के 25 देशों को अपने पक्ष में खडे होने के लिए दिए गए धन्यवाद ज्ञापन में भारत का कोई उल्लेख न होना बताता है कि भारत की स्थिति पर इजराइल बहुत संतुष्ट नहीं है।

अन्य देशों की तरह ही भारत भी तेल के लिए अरब देशों पर निर्भर रहा है और वह महासभा में उनके विरोध में नहीं जा सकता। दूसरे, भारत स्वयं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए संघर्ष कर रहा है। ऐसे में वह फिलस्तीन के इजराइल द्वारा अधिकृत क्षेत्रों पर इजराइल का साथ देने की स्थिति में नहीं है। अतः भारत को एक संतुलन बना कर चलना होगा, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति को कमजोर न करें और मित्र इजराइल के प्रति भी संवेदनशील बना रहे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 21 मई, 2021