नीति आयोग की कार्यात्मक और संरचनात्मक भूमिका पर सवाल
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हाल ही में नीति आयोग की नौंवी गवर्निंग काउंसिल की बैठक में 10 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए। इनमें से सात ने इसका बहिष्कार किया था। इससे नीति आयोग की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है।
- कुछ राज्यों ने केंद्रीय बजट में अपने राज्यों को आवंटन और परियोजनाओं के कथित कमी के कारण ऐसा किया है।
- यह असंतोष मुख्यतः विपक्षी दलों वाले राज्यों में है। दरअसल, नीति आयोग को ‘सहकारी संघवाद’ पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बनाया गया था। लेकिन इसे राज्यों और अन्य निकायों को संसाधन वितरण या आवंटन की कोई भी शक्ति नहीं दी गई है।
- नीति आयोग को केंद्र के सलाहकार निकाय के रूप में सीमित कर दिया गया है।
- इसे राज्यों का मूल्यांकन करने के लिए सूचकांक बनाने का काम दे दिया गया है। इससे ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ को बढ़ावा मिला है।
- राज्यों को अनुदान देने का निर्णय लेने की शक्ति वित्त मंत्रालय के पास है। योजना आयोग को कम से कम ऐसे मामलों में राज्यों के साथ परामर्श लेने की अनुमति थी।
- आरोप लगाया जा रहा है कि भाजपा ने अपनी सरकार को समर्थन देने वाली पार्टियों को खुश करने के लिए बिहार और आंध्रप्रदेश को अधिक अनुदान दे दिया है। ऐसे आरोपों से बचने के लिए नीति आयोग को इतना सशक्त बनाया जाना चाहिए कि सच्चे ‘सहकारी संघवाद’ की स्थापना हो सके।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 जुलाई, 2024
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