नई शिक्षा नीति 2020 में संरचनात्मक सुधार

Afeias
04 Mar 2021
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Date:04-03-21

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य स्कूली एवं उच्च शिक्षा क्षेत्र में व्यापक सुधार करना है। इन सुधारों के अंतर्गत विश्वविद्यालयों और स्वायत्तशासी महाविद्यालयों की गवर्निग बॉडी के पुनर्गठन को केंद्र में रखे जाने की आवश्यकता है।

  • सर्वप्रथम, किसी भी विश्वविद्यालय के उपकुलपति और गवर्निंग कांउसिल के प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है।

शिक्षा नीति में सिंडिकेट या गवर्निंग कांउसिल के स्थान पर प्रबंधन बोर्ड बनाने की बात कही गई है।

  • इस ढांचे में सरकारी नॉमिनी और गवर्नर या चांसलर द्वारा नामांकित व्यक्ति को शामिल करने वाली प्रथा समाप्त की जाएगी। इस प्रथा में अक्सर योग्य उम्मीद्वार पीछे छूट जाया करते थे।
  • वर्तमान ढांचे में, उपकुलपति की अध्यक्षता में, अन्य विश्वविद्यालयों के पूर्व उपकुलपतियों, उद्योगों से जुड़े व्यक्तियों, पूर्व छात्र, कुछ प्रख्यात बुद्धिजीवी, संबद्ध कॉलेजों के प्राचार्य (रोटेशन पर) एवं गैर शिक्षण कर्मचारियों के प्रतिनिधियों को बोर्ड में शामिल किया जा सकेगा। बोर्ड का कोई भी निर्णय आम सहमति से या उपस्थित सदस्यों के बहुमत के आधार पर लिया जा सकेगा।
  • उपकुलपति के चयन हेतु बनी समितियों के पुनर्गठन पर बल दिया गया है। इसमें चांसलर और सरकारी दखल को हटाने की बात कही गई है। इनके स्थान पर किसी प्रख्यात पूर्व उपकुलपति या प्रशासनिक क्षमतावान शिक्षाविद् की नियुक्ति का प्रावधान रखा जा सकेगा।

प्रक्रिया में पारदर्शिता –

  • उपकुलपति के पद के लिए समाचार पत्रों और विश्वविद्यालय की वेबसाइट के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए जा सकेंगे।
  • उम्मीदवारों का बायोडेटा, वेबसाइट पर प्रकाशित किया जा सकेगा।
  • चयन समिति, विभिन्न मानदंडों पर अंक देगी। अंकों के समेकन के बाद चुने हुए उम्मीदवारों की सूची को चांसलर की औपचारिक सहमति हेतु भेजा जा सकेगा।
  • एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा संकाय की जवाबदेही का है। इसके लिए ‘अकादमिक ऑडिट’ की संस्थागत संरचना को लागू करना ही सर्वोत्तम मार्ग हो सकता है।
  • संकाय-सदस्यों को अनिवार्य रूप से विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर शोध और शिक्षण के नवीन तरीकों के लिए अपनी वार्षिक योजनाओं को अपलोड करना होगा।
  • उनकी वार्षिक स्व-मूल्यांकन रिपोर्टों का मूल्यांकन बाहरी व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है, और उनकी सिफारिशों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
  • अतिथि शिक्षकों पर निर्भर उच्च शिक्षण संस्थानों की मौजूदा प्रवृत्ति को दूर करने के लिए शिक्षकों की भर्ती करके, संकाय की कमी को दूर करने की तत्काल आवश्यकता है।

उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए शिक्षण, अनुसंधान, नवाचार, उद्यमशीलता और सामाजिक योगदान में उत्कृष्टता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। शिक्षा नीति की सिफारिशों में चार वर्षीय पाठ्यक्रम की शुरूआत भी है। इसके बीच में बाहर निकलने और पुनः प्रवेश का विकल्प है, जो विद्यार्थियों को अनुभव बटोरने में मदद कर सकता है। उम्मीद की जा सकती है कि इन सिफारिशों को लागू करने का काम सच्चाई और ईमानदारी से किया जाएगा, जिससे कुशल युवा तैयार हो सकें।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित पी.एस. जयराम के लेख पर आधारित। 16 फरवरी, 2021

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