क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने के बजाय विनियमित करे सरकार

Afeias
03 Mar 2021
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Date:03-03-21

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हाल ही में केंद्र सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इसका उद्देश्य लोगों को बिटकॉइन में अपनी पूंजी खोने से बचाना हो सकता है। लेकिन लेकिन जिस प्रकार से इसका मूल्य जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए सरकार को निवेशकों के हित की भी सोचनी चाहिए। अच्छा तो यह होता कि सरकार इसे प्रतिबंधित करने के बजाय निवेशको कों इसके जोखिम के बारे में शिक्षित करती।

क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसी मुद्रा है, जो कंप्यूटर एल्गोरिथम पर बनी होती है। यह एक स्वतंत्र मुद्रा है। इसे कोई बैंक जारी नहीं करता। इसे जारी करने वाले ही इसे कंट्रोल करते हैं।

इसकी तमाम विसंगतियों को देखते हुए भी इसे प्रतिबंधित करना सही नहीं लगता है। इसके कुछ कारण है

  • वयस्क नागरिकों को अपने धन का स्वतंत्रता से इस्तेमाल करने का अधिकार है, बशर्ते वह दूसरों को हानि न पहुँचाए।
  • इसका व्यावहारिक लाभ इसको चलाने वाली बिटकॉइन तकनीक में है। ब्लॉकचेन के एक भाग, डिस्ट्रिब्यूटेड लैज़र तकनीक के अनेक लाभ हैं।

यह एक ऐसा डेटाबेस होता है, जिसे आपसी सहमति से विभिन्न साइट, संस्थाओं, लोगों आदि के साथ शेयर और सिंक्रोनाइज किया जा सकता है। क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने से भारत, इससे मिलने वाले लाभों से वंचित हो जाएगा।

  • नियमित मुद्रा के मानदंड से अलग एक विशिष्ट प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी से अंतरराष्ट्रीय भुगतानों को अच्छी तरह से सुलझाया जा सकता है। इससे पूरी दुनिया की डॉलर पर से निर्भरता खत्म हो जाएगी।

ज्ञातव्य है कि देश में क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी व्यापारिक गतिविधियों में हुई वृद्धि को देखते हुए नवंबर 2017 में अंतर-मंत्रालयी समिति बनाई गई थी। इसके सुझावों के आधार पर क्रिप्टोकरेंसी प्रतिबंध एवं आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विनियमन विधेयकए 2019 का मसौदा प्रस्तुत करते हुए इस पर पूर्ण प्रतिबंध का सुझाव दिया गया था। मार्च 2020 में उच्चतम न्यायालय ने क्रिप्टोकरेंसी में निवेश और व्यापार पर प्रतिबंध को हटा दिया था, और इसे व्यापार के लिए किसी प्रकार का खतरा बताने से इंकार कर दिया था।

फिलहाल विश्वभर में 1500 से अधिक क्रिप्टोकरेंसी प्रचलित हैं। किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होने से इसके भविष्य को लेकर आशंका बनी रहती है।

इसके लाभों को देखते हुए और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए सरकार को चाहिए कि इसे प्रतिबंधित करने के बजाय सभी हितधारकों के बीच समन्वय को बढ़ाए व इसके विनियमन के लिए एक मजबूत एवं पारदर्शी तंत्र का विकास करे।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित सम्पादकीय पर आधारित। 12 फरवरी, 2021

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