सरकार और व्यापार-वाणिज्य

Afeias
16 Sep 2021
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Date:16-09-21

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किसी भी देश की उन्नति के लिए वहाँ की सरकार और व्यवसायों के बीच एक प्रकार के विश्वास की नितांत आवश्यकता होती है। जर्मनी, अमेरिका और जापान जैसे कुछ अन्य देशों की समृद्धि और प्रगति का यही राज है। भारत में सरकार और व्यवसायों के बीच बढ़ती विश्वास की कमी, अति विनियमन, जटिल कानून एवं उच्च लागत ने देश को अप्रतिस्पर्धी बना दिया है।

  • अविश्वास का वर्तमान उदाहरण, भारतीय रेल्वे की 150 ट्रेनों को निजी हाथों में सौंपने के सरकारी प्रयास में दिखाई देता है। इसके लिए बोली लगाने के लिये कोई भी निवेशक सामने नहीं आया, क्योंकि उन्हें मौजूदा नियामक पर भरोसा नहीं था। समान अवसर प्रदान करने के लिए उन्होंने एक स्वतंत्र नियामक की मांग की थी, जिसे रेलवे ने नहीं माना। अंततः देश का ही नुकसान हुआ।
  • दूसरे, ई-कॉमर्स नियमों के साथ एक बार फिर से सरकारी हस्तक्षेप की खबरें आ रही हैं। इससे भारतीय और विदेशी निवेशकों को अक्सर परेशानी ही होती आई है। 5% से भी कम के इस रिटेल वाणिज्य को सरकार खत्म करने का प्रयत्न क्यों कर रही है, जबकि यह भारत के अनेक लघु उद्योगों को वैश्विक बाजार से जुड़ने का अवसर प्रदान कर रहा है।
  • हाल ही में वित्त मंत्रालय ने आयकर ई-फाइलिंग में आई विफलताओं की व्याख्या करने के लिए इंफोसिस को बुलाया था। इस प्रकार के सार्वजनिक ‘समन‘ को व्यापार-वाणिज्य जगत में भय उत्पन्न करने वाला माना जाता है।

1991 के तीस वर्षों के बाद सरकार को इसे अच्छी तरह से याद रखना चाहिए कि स्वतंत्रता पश्चात की नेहरू सरकार की व्यवसायियों के प्रति अविश्वास की नीति विफल हो चुकी है। व्यापार-वाणिज्य को व्यवसाय समर्थक या विरोधी सरकार की आकांक्षा नहीं होती। वह सिर्फ ऐसी सरकार चाहता है, जो खुला दृष्टिकोण रखती हो। सरकार को चाहिए कि वह उद्योग एवं वाणिज्य परिषद को सक्रिय करके उनसे विचार-विमर्श करके मतभेदों को दूर करे। इसी में राष्ट्र का हित है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित गुरचरण दास के लेख पर आधारित। 30 अगस्त, 2021

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