रक्षकों के हाथों मानवाधिकार का हनन क्यों ?

Afeias
15 Sep 2021
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Date:15-09-21

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देश की पुलिस के कामकाज पर लगातार प्रश्न चिन्ह लगते जा रहे हैं। कभी आपराधिक न्याय से जुड़े मामलों में अधूरी और लचर जांच के लिए उन्हें न्यायालय में लताड़ा जा रहा है, तो कभी पुलिस थानों में मानवाधिकार के उल्लंघन संबंधी मामलों में उनकी छवि धूमिल हो रही है।

पुलिस की लापरवाही से जुड़े कुछ तथ्य

  • नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एन सी आर बी) डेटा से पता चलता है कि 2010 और 2019 के बीच पुलिस हिरासत में प्रतिवर्ष औसतन 100 मौतें होती रही हैं। भले ही इनके पीछे भिन्न कारण रहे हों, फिर भी हिरासत में होने वाली मृत्यु पुलिस को संदेह के घेरे में ला खड़ा करती है।

सुधारात्मक कदम क्या हो सकते हैं

  • गिरफ्तारी की संख्या को कम किया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि प्रत्येक गिरफ्तारी न्यायोचित हो, और अनिवार्यता के पैमाने पर खरी उतरे।

एन सी आर बी डेटा से पता चलता है कि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत होने वाली गिरफ्तारियों में कुछ कमी आई है। 2010 से 2019 के बीच दंड संहिता के अंतर्गत होने वाले अपराधों में बढ़ोत्तरी के बावजूद पिछले पांच वर्षों में गिरफ्तारियों में आई पांच लाख की कमी मायने रखती है।

  • नेशनल पुलिस कमीशन एवं विधि आयोग ने अपनी 154वीं और मलीमथ आयोग रिपोर्ट के अलावा प्रकाश सिंह, बनाम भारत सरकार मामले में सिफारिश की गई है कि जांच को पारदर्शी और बेहतर बनाने के लिए पुलिस से इसे अलग रखा जाना चाहिए।

जांच के लिए एक पृथक विंग होने से दोषी से स्वीकारोक्ति के लिए अनुचित माध्यमों का प्रयोग नहीं होगा, और इसे पेशेवर दृष्टिकोण से संपन्न किया जा सकेगा।

  • सिविल पुलिस के पास काम का अतिरिक्त बोझ होता है। इसलिए वह जल्द-से-जल्द अपराध की स्वीकारोक्ति में फंस जाती है। जांच अधिकारी के लिए मामलों की सीमा निर्धारित कर दी जानी चाहिए। साइबर अपराध जैसे मामलों में उसकी सहायता के लिए विशेषज्ञ होने चाहिए।
  • मानवाधिकार के संदर्भ में पुलिस के लिए अनेक दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। इनमें हिरासत में लिए गए व्यक्ति को फोन करने तथा वकील करने की सुविधा देने आदि को शामिल किया गया है।
  • थानों में सीसीटीवी कैमरा लगाए जाने लगे हैं।

एन सी आर बी डाटा से पता चलता है कि पिछले 10 वर्षों में पुलिस के विरूद्ध प्रत्येक वर्ष 47.2 आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों को यह भान होना चाहिए कि उनका काम मानवाधिकार का हनन नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा करना है।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित आर. के. विज के लेख पर आधरित। 30 अगस्त 2021

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