हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण और विकास का द्वंद

Afeias
14 Sep 2021
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Date:14-09-21

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हिमालयी क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता, पर्यावरण और पारिस्थितिक चुनौतियों के विपरीत दिखाई दे रही है। उत्तराखंड सरकार ने दशकों से इस क्षेत्र को बिजली देने के लिए अनेक जलविद्युत परियोजनाओं की परिकल्पना की है। 2013 में केदारनाथ की बाढ़ के बाद उच्च्तम न्यायालय ने अलकनंदा और भागीरथी नदी घाटियों में जलविद्युत परियोजनाओं को रोकने का आदेश दिया था। पिछले कुछ वर्षों से इस मुद्दे पर काफी विवाद देखा जा रहा है। इस पर विशेषज्ञों और सरकार के तर्कों को देखा जाना चाहिए।

विशेषज्ञों की राय –

विशेषज्ञों की एक समिति ने न्यायालय से सिफारिश की है कि निर्माण के लिए सरकार द्वारा स्वीकृत लगभग सभी परियोजनाओं को रद्द कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि नदी के स्वास्थ के लिए निर्बाध प्रवाह आवश्यक है, और जलविद्युत परियोजनाएं बाधा हैं।

तीव्र बारिश की बढ़ती तीव्रता, भूस्खलन, हिमस्खलन और जान-माल के नुकसान में भी एक प्राकृतिक चेतावनी छिपी है, जो बुनियादी ढांचे के विकास पर लगाम लगाने की ओर संकेत कर रही है।

सरकार का मत-

रद्द की गई परियोजनाओं में से छः के समर्थकों ने इस आधार पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है कि उन्होंने पूर्व मंजूरी प्राप्त कर ली थी, और इन्हें रद्द करने से बहुत नुकसान होगा।

सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में भी आपसी द्वंद है। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का प्रबंधन करने वाले जल संसाधन मंत्रालय ने परियोजनाओं का विरोध किया है, जबकि बिजली मंत्रालय इनके लिए जड़े जमाना चाहता है।

सरकार की दलील है कि जो परियोजनाएं 50% से अधिक पूरी हो चुकी हैं, उन्हें पूरा करने की छूट दे दी जाए। परंतु न्यायालय को दिए गए एफीडेविट में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है।

जाहिर है कि उत्तराखंड सरकार भी अपनी जनता की बिजली व अन्य विकास कार्यों की पूर्ति की मांग के लिए प्रतिबद्ध है। अतः विद्युत कंपनियों और सरकार को बातचीत के जरिए कोई ऐसा रास्ता निकालने का प्रयत्न करना चाहिए, जो राज्य की जनता के हित में हो। यही उपयुक्त होगा।

द हिंदू‘ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 अगस्त, 2021

 

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