ढहता हिमालय

Afeias
02 Mar 2021
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Date:02-03-21

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हाल ही में ऋषि गंगा में बनी एक कृत्रिम झील के माध्यम से हुए विध्वंस ने एक बड़ी चेतावनी दी है। यह चेवावनी, विकास के नाम पर संवेदनशील हिमालय क्षेत्र में अंधाधुंध खिलवाड करने वालों के लिए है। इस विनाशलीला से जन, धन और अनेक परियोजनाओं को भारी क्षति पहुँची है। इसका अनुमान 4,000 करोड़ रु, से अधिक माना जा रहा है। पर्वतों की प्रकृति को समझे बिना किए जाने वाले विकास कार्यों से चमोली और केदारनाथ जैसी कई अन्य बाढ़ की आशंका बनी हुई है।

कुछ कारण –

  • अध्ययन बताते हैं कि इस शीत ऋतु में वर्षा और बर्फ में बहुत कमी रही है। पिछले 60 वर्षों की तुलना में इस वर्ष अधिकतम तापमान देखा गया है। तापमान में बढ़ोतरी को शीत में लगने वाली जंगलों की आग से भी समझा जा सकता है।
  • जब हम नदियों पर बांध बनाकर उनके प्राकृतिक प्रवाह को रोकते है, जब हम जंगलों को उनकी प्राकृतिक आवास और पारिस्थितिकी संरक्षण की भूमिका से रोकते हैं, जब हम हिमालय की भंगुरता की परवाह न करते हुए खुदाई और मलबा फेंककर सड़क बनाते चले जाते हैं, तब भूमि, वन, पर्वत और नदियों का संतुलन खत्म हो जाता है।
  • हिमालय क्षेत्र की हाइड्रो और सड़क परियोजनाओं को शुरू करने से पूर्व, क्षेत्र के पारिस्थितिकीय इतिहास, लागत आधारित लाभ मूल्यांकन, समुदायों के पलायन, जैव विविधता के नाश, चारागाह एवं कृषि भूमि के खात्मे और सांस्कृतिक विरासत की हानि पर गहन शोध नहीं किया गया था।
  • सड़क एवं विभिन्न परियोजनाओं के नाम पर होने वाली खुदाई से नदी तल की मिट्टी, तलछट और पत्थरों की स्थिति में भारी विस्थापन से नदियां उफान पर आ जाती हैं।
  • दुर्घटना का बहुत बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन से संबद्ध है। अध्ययन बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन की रफ्तार पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक होती है। इस तथ्य की लगातार अनदेखी की गई है।
  • कुछ विशेषज्ञों ने व्यक्तिगत रूप से एन्वायरोमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) किया था, जिसे अब एक सरकारी एजेंसी को सौंप दिया गया है। इसके बाद, सरकार ने ईआईए के नियमों में परिवर्तन कर दिया, और श्रम कानूनों को भी तरल कर दिया। ऐसा पहली बार हुआ है, जब मंत्रालय ने पर्यावरण और संरक्षण को प्राथमिकता न देते हुए कॉर्पोरेट के हितों को ऊपर रखा है।
  • 2013 की बाढ़ में बह गए विष्णु गंगा परियोजना का लोगों ने पहले ही विरोध किया था। रेनी की जनता ने ऋषि गंगा परियोजना का बहुत विरोध था। मामला उच्चतम-न्यायालय तक पहुँचा। भीतरी हिमालय क्षेत्र में बांध के निर्माण के विरोध में निर्णय दिया गया। इस हेतु रवि चोपड़ा समिति बनी, जिसने 24 हाइड्रो परियोजनाओं पर रोक लगाने की सिफारिश की। चारधाम सड़क योजना के प्रभावों को जानने के लिए भी समिति बनाई गई। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेशों के कड़ाई से पालन किए जाने का कोई संज्ञान नहीं लिया।

तापमान के बढ़ने के साथ ही ऊपरी हिमालयी क्षेत्रों में रासायनिक अपक्षय की प्रक्रिया बड़ी तेजी के साथ सक्रिय है। ऋषि गंगा का इतिहास भी बताता है कि उसके कारण 1968 एवं 1970 में भी विध्वंस हुआ है। 2013 में आई उत्तराखंड की बाढ़ से मची तबाही को कैसे भुलाया जा सकता है। क्षेत्र के लोगों के जान-माल, घर, खेत-खलिहान, वन और नदियों के विनाश को जल्द-से-जल्द नियंत्रित किया जाना चाहिए। अन्यथा हम हिमालय से प्राप्त वरदानों से च्युत हो जाएंगे।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित शेखर पाठक के लेख पर आधारित। 13 फरवरी, 2021

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