नैनो यूरिया की खोज से हरित क्रांति में योगदान
Date:30-06-21 To Download Click Here.
इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर र्कोपरेटिव लिमिटेड या आई.एफ.एफ.सी.ओ.(इफ्को) ने भारतीय कृषि तकनीक में नैनो तरल यूरिया की खोज के साथ ही एक नए अध्याय की शुरुआत की है। इस नई खोज से कृषि का रूपांतरण होने के साथ-साथ कृषि उत्पादन बढ़ेगा, पानी की खपत कम होगी, प्रदूषण घटेगा एवं केंद्र द्वारा यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी में बचत होगी।
नैनो तकनीक क्या है ?
यह तकनीक अणु और परमाणु के स्तर पर काम करती है। यह छोटे कणों को इस प्रकार से डिजाइन करती है कि वे उच्च सतह द्रव्यमान अनुपात पर काम करते हैं, और पौधों में पोषण की संतुलित मात्रा पहुँचा देते हैं।
नैनो यूरिया के लाभ –
- यूरिया के अत्याधिक उपयोग पर रोक
- मृदा स्वास्थ में सुधार
- जल का सीमित प्रयोग होगा
- कृषकों की लागत कम होगी
- यूरिया से होने वाला पारिस्थितिकी प्रदूषण कम होगा। नैनो यूरिया से अपेक्षाकृत कम प्रदूषण होता है।
- इफ्को के अनुसार पैदावार में 8% की वृद्धि हो सकती है।
- भंडारण पर कम खर्च करना होगा।
फिलहाल देश में प्रतिवर्ष 3 करोड़ टन यूरिया की खपत होती है। प्रति एकड़ लगभग दो बैग यूरिया की खपत होती है, जिसे नैनो यूरिया की 500 मि.ली. की एक बोतल से स्थानांतरित किया जा सकता है। खाद सब्सिडी में 28% कमी आने का अनुमान है।
ईफ्को की इस उपलब्धि का भविष्य निर्यात क्षेत्र में खंगाला जाना चाहिए। इस प्रकार वैश्विक हरित क्रांति में भारत की ओर से यह बड़ा योगदान हो सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 4 जून, 2021