
(MSME) एमएसएमई और निर्यात के अवसर
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सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रम (MSME) क्षेत्र में यह संभावना है कि वह निर्यात को बढ़ावा देकर तथा देश की आर्थिक गतिविधियों में योगदान करके देश में विकास के इंजन की भूमिका निभा सके। बहरहाल, देश के निर्यात में इसकी हिस्सेदारी कम हो रही है, और यह वित्त वर्ष 2020 से 49.77 फीसदी से कम होकर वित्त वर्ष 2023 में 42.67 फीसदी रह गई है।
1) देश में शुल्क रियायत और निर्यात प्रोत्साहन प्रक्रियाओं में मोटे तौर पर निर्यात के समय माल ढुलाई के कार्गो स्वरूप को पहचाना जाता है। इससे कूरियर से निर्यात करने वाले ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए निर्यात प्रोत्साहन पाना मुश्किल हो जाता है।
2) बाजार शोध के लिए मंगाए गए नमूने अथवा ई-कॉमर्स में नकारी गई वस्तुएँ जो वापस की जाती हैं या ऑनलाइन बिक्री में नहीं बिकने वाली वस्तुओं को दोबारा आयात करने पर आयात शुल्क लगाया जाता है। यह MSME कंपनियों के मुनाफे पर असर डालती हैं।
3) कुल MSME में से करीब 90% सूक्ष्म उपक्रमों के रूप में दर्ज हैं और उनमें बड़े पैमाने पर काम करने की क्षमता नही हैं।
4) भारत में मौजूदा नीतिगत परिदृश्य ऐसा है, जहाँ MSME को छोटे पैमाने पर काम करने को प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे यह समस्या बरकरार है।
5) औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 तथा अन्य श्रम कानून भी एक वजह है। श्रम कानूनों को संसद ने सुसंगत बनाया, लेकिन अभी तक उनका क्रियांवन नहीं किया गया है।
6) निर्यात के काम में बड़े पैमाने पर कागजी कार्रवाई की आवश्यकता होती है, ऋण तक पहुंच बनाने में दिक्कत होती है, और लक्षित बाजार के बारे में सीमित जानकारी भी देश में MSME की निर्यात क्षमता को प्रभावित करती है।
आगे की राह –
1) MSME निर्यात को बढ़ावा देने के लिए व्यापक राणनीति बनाने की आवश्यकता है, जिसमें ऐसे प्रोत्साहन हों, जो ई-कॉमर्स प्लेटफॉमों को बिना नियामकीय बाधाओं के काम करने की इजाजत देते हों।
2) कार्यशील पूंजी की मदद से निर्यात ऋण गारंटी को बढ़ावा दिया जा सकता है।
सामान्य तौर पर वित्त तक पहुँच बढ़ाकर तथा सूचनाओं की विसंगति को कम करके MSME के निर्यात को गति प्रदान की जा सकती है।
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