मनरेगा पर कुछ नवीनतम तथ्य
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- 35 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में से 21 ने वित्त वर्ष 2021-22 में मनरेगा के लिए आवंटित निधि के 100% से अधिक निधि का उपयोग कर लिया है।
- इस वर्ष के बजट में 73,000 करोड़ रु. का आवंटन किया गया है। परंतु यह बजट व्यय का केवल 2.1% है। इस संदर्भ में, पिछले छः वर्षो में यह सबसे कम रहा है।
- अक्टूबर के अंत तक केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और हिमाचल प्रदेश ने इस योजना के लिए संबंधित आवंटन के 130% से अधिक का उपयोग कर लिया था। यह दर्शाता है कि बेहतर राज्यों में भी ग्रामीण श्रमिक इस योजना पर किस हद तक निर्भर हैं।
- एक रिपोर्ट के जवाब में ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारियों ने राज्यों पर कृत्रिम रूप से मांग पैदा करने का आरोप लगाया था। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि कुछ श्रमिकों को धन की कमी के कारण वापस कर दिया गया है।
गरीब किसान परिवारों की सहायता में, फसल और मौसम बीमा की अनुपस्थिति में मनरेगा जैसे प्रभावी विकल्प को ढूंढा गया था, जो कृषि और आर्थिक संकट के दौरान खेतिहर मजदूरों और श्रमिकों की सहायता करता रहा है।
मजदूरी के भुगतान में देरी से ग्रामीण अंचल की खपत में भी गिरावट आ सकती है। इससे अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका उत्पन्न हो सकती है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह आवंटन के दौरान संकट में योजना की उपयोगिताए ग्रामीण विकास और बुनियादी ढांचे में सुधार जारी रखने के लिए परिव्यय में संकुचित दृष्टिकोण न अपनाए। संकट को कम करने वाली योजना के रूप में मनरेगा की उपयोगिता को बनाए रखना ही श्रेयस्कर होगा।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 1 नवंबर, 2021
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