मेक इन इंडिया की वर्तमान स्थिति से जुड़े कुछ तथ्य
Date:13-09-21 To Download Click Here.
- मेक इन इंडिया मिशन की शुरूआत हुए लगभग सात वर्ष हो चुके हैं। परंतु देश में तैयार उत्पादों में स्थानीय सामग्री के कम प्रयोग पर अभी भी सरकार चिंतित है।
- इस कमी के पीछे बड़े टर्नओवर, विशिष्ट ब्रांड, विदेशी प्रमाणन और व्यापारियों को मिले पूर्व अनुभव जैसे कारण हैं। निविदाओं में कठोर शर्तें स्थानीय कंपनियों को बाहर रखती हैं। लेकिन केवल इन मानदंडों में ढील देने से स्थानीय सोर्सिंग और खरीद की मात्रा में वृद्धि नहीं होगी।
- इस हेतु वास्तविक मूल्यवर्धन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। सरकार को आयात शुल्क कम करना चाहिए। वर्तमान में औसत शुल्क 14% है। कच्चे माल, मध्यवर्ती और अंतिम उत्पादों पर 5% का समान शुल्क यह सुनिश्चित करेगा कि उत्पादन की एक पंक्ति को दूसरे से अधिक लाभ नहीं दिया जा रहा है। इससे उपभोक्ताओं को भी कम दाम में सामग्री मिलेगी।
- अधिक सुरक्षा की ओर झुकाव समाप्त होना चाहिए।
उदाहरण के लिए, माइक्रोचिप्स की वैश्विक कमी ने ऑटोमोबाइल के उत्पादन से लेकर स्मार्टफोन तक सब कुछ को प्रभावित किया है। भारत में चिप्स के उत्पादन और इस हेतु मशीनों पर सब्सिडी देकर एक बेहतर औद्योगिक नीति तैयार की जा सकती है।
सरकार को केवल तैयार माल पर उत्पाद शुल्क में भारी रियायत देने के स्थान पर माल के प्रत्येक स्तर पर समान शुल्क की व्यवस्था करनी चाहिए। तभी ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत को वास्तविक गति मिल सकेगी है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 अगस्त, 2021
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