कृत्रिम बुद्धिमत्ता के नीति और नियम कैसे हों?
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एआई के दौर में प्रत्येक देश के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वह इस नई ताकतवर तकनीक को बढ़ावा देते हुए भी कैसे नियंत्रण में रखे? इस वातावरण में जापान ऐसे नियम बना रहा है, जिसमें नवाचार का माहौल बनाने के साथ-साथ सुरक्षित एआई के प्रयोग पर जोर दिया जा रहा है।
जापान ने 2023 के जी-7 शिखर सम्मेलन में हिरोशिमा एआई प्रोसेस (एआई सिस्टम बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमन को बढ़ावा देने वाला फ्रेमवर्क) के दृष्टिकोण को अपनाया है। उसने यूरोपीय संघ या चीन के नियमों की तरह सख्त कानून न बनाकर अपेक्षाकृत नरम कानून बनाना शुरू किया है।
कुछ बिंदु –
- सरकार का सुविधा प्रदाता के रूप में काम करना – जापान की सरकार निजी क्षेत्र को अगुवा मानती है, और अपने विभागों को उनकी मदद के लिए सक्रिय रहने को कहती है।
- वित्तपोषण और निवेश पर ध्यान – जापान ने जेनेरेटिव एआई, घरेलू डेटा सेंटर और स्थानीय चिप उत्पादन के लिए बड़ा कोष बनाया है। इससे तकनीकी कंपनियों के साथ साझेदारी में प्रोत्साहन व सब्सिडी प्रदान की जाती है। भारत में भी ऐसा कोष है, लेकिन इसका उपयोग नवाचार के बजाय प्रसंस्करण इकाइयों में अधिक हो रहा है।
- सरकार, अकादमिक और उद्योग में सामंजस्य – देश के तमाम विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, निजी क्षेत्र व वैश्विक तकनीकी कंपनियों को साथ लेकर ‘एआई जापान आर एण्ड डी नेटवर्क‘ काम कर रहा है। भारत भी इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।
- घरेलू क्षमता का निर्माण – भारत में ऐसे कई मॉडल बन रहे हैं, जो तकनीकी क्षमता की बढ़ोतरी का प्रमाण देते हैं। आधार तथा यूपीआई के जरिए आम लोगों के लिए तकनीक विकसित की जा रही है।
- दार्शनिक नजरिया – निजता और डेटा उपयोग जैसे बुनियादी तत्वों पर पूर्व की सोच अलग है। यहाँ इसे सामूहिक व सामाजिक निजता की तरह देखा जाता है। जबकि पश्चिम में यह व्यक्तिगत होती है।
ऐसे में, हमें एआई नियमन के लिए जापान को अपना आदर्श मानकर चलना चाहिए। इससे नवाचार व नियमन में संतुलन बना रहेगा।
‘हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित जसप्रीत बिंद्रा के लेख पर आधारित। 24 जून, 2024
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