कामकाजी महिलाएं और पोषण

Afeias
25 Jan 2021
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Date:25-01-21

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देश में कुपोषण की समस्या एक ज्वलंत प्रश्न बन गई है। इसका संबंध देश में महिलाओं के कामकाजी होने से है। किसी परिवार की महिला के कामकाजी होने से पूरा एक चक्र जुड़ा हुआ है, जो उसकी पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन लाता है। ऐसा संभव करने के लिए कुछ परिस्थितियां बनानी पड़ती हैं, और इन्हें बनाना सरकार का दायित्व है।

कुछ बिंदु –

  • कुपोषण को एक महिला के काम से जोड़कर देखा जाना चाहिए। एक महिला के कामकाजी होने के लिए बच्चों की उचित देखभाल की व्यवस्था का होना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए सरकार ने आंगनबाडी और क्रेच का इंतजाम किया है।

आंगनबाडियों के घंटों में वृद्धि की जानी चाहिए। साथ ही मोबाइल क्रेच बढ़ाए जाने चाहिए, जिससे महिलाएं बिना किसी चिंता के काम कर सकें।

  • आंगनबाडी के माध्यम से दी जाने वाली पोषण-शिक्षा, पोषण की पूर्ति के लिए दी जाने वाली गोलियां, गर्म और पोषक भोजन आदि कामकाजी महिलाओं के लिए बहुत सहायक होती है।

कर्नाटक में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि इन केंद्रों में मिलने वाली सहायता से गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं के पोषण-स्तर में बढ़ोतरी हुई है।

  • महिलाओं की शिक्षा उनके पोषण स्तर को बढ़ाने और कार्यबल में शामिल होने के लिए सकारात्मक भूमिका निभाती है। अतः उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में लड़कियों का पंजीकरण बढ़ाने और उन्हें रोके रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। विद्यालय आने पर मध्यान्ह भोजन के माध्यम से उन्हें गर्म और पोषक भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • मनरेगा में महिलाओं को पुरूषों के बराबर वेतन दिया जा रहा है। इससे उनका जीवन स्तर बढता है, और सामाजिक सशक्तिकरण होता है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा भी उन्हें बराबरी का रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे वे अपने परिवार और स्वयं के लिए बेहतर पोषण प्राप्त कर सकती हैं।

विभिन्न प्रयासों के अलावा ग्राम पंचायतों की अहम भूमिका होती है। भारत में लगभग ढाई लाख ग्राम पंचायतें और 14 लाख आंगनबाड़ी हैं। आंगनबाड़ी समिति का नेतृत्व एक महिला को सौंपा जाना चाहिए, जो माँ भी हो। साथ ही अन्य अभिभावक, बुजुर्ग और पंचायत वार्ड सदस्य को मिलाकर एक उप समिति बनाई जानी चाहिए। इसमें हुई चर्चाओं को ग्राम पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। गाँवों में पोषण और कामकाजी महिलाओं की समस्याओं को स्थानीय स्तर पर जल्दी सुलझाया जा सकता है। दूसरे, बाल विवाह पर नियंत्रण रखकर, लड़कियों की शिक्षा को जारी रखने का काम भी पंचायत ही सबसे अच्छी तरह कर सकती हैं।

महिलाओं को कचरा प्रबंधन, वाटर पम्प संचालन, सर्वेक्षण, बिल संग्रहण एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों में काम दिया जा सकता है। इससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित उमा महादेवन दासगुप्ता के लेख पर आधारित। 5 जनवरी, 2021