जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से मुक्ति के प्रयास जरूरी हैं
Date:24-08-21 To Download Click Here.
इंटरगवर्मेन्टल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज की हाल में आई रिपोर्ट बताती है कि अगले तीन दशकों में अगर हमने ऊर्जा के जीवाश्म साधनों को खत्म करके वैकल्पिक ऊर्जा का सहारा नहीं लिया, तो भविष्य में जलवायु परिवर्तन की विकरालता बढ़ने की आशंका रहेगी। इसके मद्देनजर भारत में ऊर्जा की स्थिति से संबंधित कुछ प्रश्नों पर एक दृष्टि –
- ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर निर्भर होने से राज्यों के आपसी संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
- सरकारी राजस्व, सार्वजनिक व्यय और क्षेत्रीय असमानता पर क्या प्रभाव होगा ?
- कोयले का केंद्र रहे धनबाद, सिंगरौली आदि जिलों के रोजगार और प्रगति का क्या होगा ?
- जीवाश्म ईंधन आधारित उद्योगों, जैसे थर्मल पावर, स्टील, सीमेंट, रिफाइनरी, ऑटोमोबाईल, पेट्रोल पंप और यूरिया जैसे उद्योगों में कार्यरत औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मियों को कैसे पुनः रोजगार दिया जा सकेगा ?
इन प्रश्नों के उत्तर हमें पांच मुख्य बिंदुओं में मिल सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं –
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भर जिलों/ राज्यों में अर्थव्यवस्था और उद्योगों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए। नीतियों में परिवर्तन केवल ऊर्जा स्रोतों के बदलाव पर आधारित न होकर न्यायोचित होना चाहिए।
- भूमि और बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए, क्योंकि कोयला आधारित उद्योगों के पास विशाल भूमि और संपत्ति है। इस भूमि को हरित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए फिर से तैयार किया जा सकता है।
- रोजगार के नुकसान से बचने और हरित उद्योगों के लिए एक नया कार्यबल बनाना होगा। इस हेतु कोयला उद्योगों में संलग्न कार्यबल को कुशल बनाया जा सकता है।
2019 में अमेरिका ने कोयला उद्योग के 54,000 लोगों को रोजगार दिया है। भारत में यह आंकड़ा दो करोड़ से अधिक होगा।
- न्यायोचित बदलाव में राजस्व प्रतिस्थापन (रेवेन्यू सब्स्टीट्यूशन) और निवेश जीवाश्म ऊर्जा पर आधारित उत्तरोत्तर करों को पूरा करने के लिए जिला खनिज फाउंडेशन फंड और जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर जैसे करों का उपयोग करने की आवश्यकता होगी।
- आज से बेहतर संसार के निर्माण के लिए बदलाव की प्रक्रिया के दौरान जिम्मेदारी से सामाजिक और पर्यावरणीय प्रथाओं को अपनाना होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चंद्रभूषण के लेख पर आधारित। 11 अगस्त, 2021
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