सौर ऊर्जा : वरदान या अभिशाप

Afeias
02 May 2017
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Date:02-05-17

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हाल ही में सौर ऊर्जा की कीमतें 5 रु. से घटकर 3.15 रुपये प्रति यूनिट हो गई है। ऐसा होने से अब सौर ऊर्जा को कोयले पर आधारित ऊर्जा का प्रतिस्पर्धी माना जा सकता है। केंद्र सरकार ने भी 2020 तक सौर ऊर्जा की क्षमता को 40 गीगावॉट एवं 2022 तक 100 गीगावॉट करने का लक्ष्य रखा है। आज यह क्षमता मात्र 12 गीगावॉट है। अगर सरकार के अनुमानित लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता मिल जाती है, तो कोयला आधारित ऊर्जा का एक सस्ता एवं नवीकरणीय विकल्प हमें मिल जाएगा।

सच्चाई यह है कि सौर ऊर्जा की कीमतों के घटने के पीछे बहुत तरह की सब्सिडी हैं। अन्यथा इसकी कीमत थर्मल ऊर्जा से कहीं बहुत अधिक होगी।सौर ऊर्जा के साथ एक और बड़ी समस्या यह है कि इसे प्राथमिकता तब दी जाती है, जब मांग की तुलना में आपूर्ति बहुत बढ़़ जाती है। छः साल पहले कोयला आधारित संयंत्रों का प्लांट लोड फैक्टर 76%  था, जो अब 58% है। पहले भारत में बिजली की कमी थी। परंतु अब हमारे अधिकतर भागों में इसकी अधिकता है। स्थिति यह है कि भारत अब बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार को भी बिजली दे रहा है।

कोयला आधारित बिजली संयंत्र के मालिकों ने प्लांट लोड फैक्टर के कम से कम 70%  रहने की उम्मीद की थी। इससे वे अच्छा लाभ कमा सकते थे। परंतु इसके 58% रहने के कारण खा़सतौर पर ऐसे व्यवसायी परेशानी में आ गए हैं, जो निजी तौर पर बाज़ार में काम कर रहे हैं और जिनका राज्य सरकार से बिजली के बारे में कोई समझौता नहीं है।

फिलहाल 65 गीगावॉट की कुल क्षमता देने वाले बिजली संयंत्र तैयार हो रहे हैं। ऊपर से सौर ऊर्जा के नए संयंत्र इन कोयला आधारित संयंत्रों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। अगर प्लांट लोड फैक्टर गिरकर 48 % पर चला जाता है, तो बहुत से बिजली संयंत्रों को बहुत हानि होगी। इन संयंत्रों ने बैंक से बहुत सा ऋण ले रखा है। ऐसा होने पर ऋण की वसूली से जूझ रहे बैंकों को एक बड़ा झटका लग सकता है।कुल मिलाकर सौर ऊर्जा में वृद्धि वरदान की तरह दिखाई देती है परंतु वास्तव में यह अभिशाप बन सकती है। हमें इसकी गति को धीमा कर देना चाहिए।सौर ऊर्जा का उत्पादन दिन के समय ही हो पाता है, जबकि ऊर्जा की मांग रात के समय अधिक बढ़ती है। इस समय कोयले वाली ऊर्जा ही काम देती है। एक पूरे दिन के लगभग आधे समय में निष्क्रिय पड़े सौर ऊर्जा के संयंत्रों का खर्च बहुत ज्यादा आता है। अतः सौर ऊर्जा के सस्ते होने की बात भ्रामक है।सच्चाई यह है कि सरकार सौर ऊर्जा के उपकरणों के उत्पादन के लिए 25% सब्सिडी देती है। सौर ऊर्जा संयंत्रों की नीची बोली लगाने वालों को इसके लिए बहुत ही सस्ती या मुफ्त भूमि सरकार की ओर से दी जाती है।

पिछले वर्ष एक निवेशक सम्मेलन में सौर ऊर्जा उद्यमी ने सौर ऊर्जा की वास्तविक दर 6 रु. प्रति यूनिट और स्टोरेज के साथ 8 रु. प्रति यूनिट बताई थी। जबकि कोयला आधारित बिजली की कीमत 2.50 रु. प्रति यूनिट आती है। व्यावसायिक कोयला बिजली संयंत्रों में इसकी कीमत 1.77 रु. ये लेकर 4 रु. प्रति यूनिट रहती है।सौर ऊर्जा की सबसे बड़ी समस्या सूर्यास्त के बाद उसकी अनिरंतरता है। अगर हम अतिरिक्त ऊर्जा के भंडारण की बात करें तो पुराने तरीकों की बैटरी के माध्यम से इसका भंडारण बहुत महंगा पड़ता है। इस क्षेत्र में नई तकनीकें कुछ राहत दे सकती हैं। परंतु अभी इनका अभाव है।

सौर ऊर्जा के लिए अपना लक्ष्य तय करने की बजाय देश को विद्युत की कुल मांग और आपूर्ति के बीच तालमेल बैठाना होगा। मांग को बढ़ाना होगा, ऊर्जा के उत्पादन की गति को धीमा करना होगा और सौर-थर्मल ऊर्जा के संयुक्त लक्ष्य को लेकर चलना होगा।

टाइम्स ऑफ़  इंडिया में प्रकाशित स्वामीनाथन एस अंकलेश्वर अय्यर के लेख पर आधरित।

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