जनसंख्या नियंत्रण में है
Date:10-08-21 To Download Click Here.
भारत की प्रजनन दर लगातार घट रही है। इसके प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) स्तर से अधिक नहीं होने का अनुमान लगाया जा रहा है। यहां तक कि अपेक्षाकृत उच्च प्रजनन स्तर वाले राज्यों में भी तेज गिरावट देखी जा रही है। प्रजनन क्षमता में आ रही यह गिरावट आने वाले वर्षों में जनसंख्या वृद्धि को धीमा कर देगी।
कुछ तथ्य –
- 1980 के दशक से, प्रत्येक बाद के दशक में भारत की जनसंख्या में थोड़ी-थोड़ी वृद्धि होती गई है। 1971 और 1981 की जनगणना में वृद्धि दर 25% से कम थी। बाद के दशकों में यह और कम होते हुए 2011 और 2021 में 12.6% हो गई। यह आंकडा जबरन नसबंदी या आधिकारिक तौर पर निर्धारित मानदंडों से अधिक संतानोत्पत्ति करने के लिए लोगों को दंडित करके हासिल नहीं किया गया है।
- संपूर्ण भारत के इस परिदृश्य से प्रतिकूल माने जाने वाले यूपी और बिहार जैसे राज्यों में भी यही स्थिति रही है। 2011 और 2021 की जनगणना में वृद्धि दर गिरकर 15.6% पर आ गई है। बिहार में 2001 की 28.6% वृद्धि दर 2011 और 2021 में गिरकर 18.2% पर आ गई है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखंड और असम में भी जनसंख्या वृद्धि दर लगातार कम हो रही है। राष्ट्रीय औसत की तुलना में तो असम की जनसंख्या वृद्धि दर 12.3% ही रही है।
- वृद्धि दर में तेजी से कमी लाने वाले राज्य केरल को अपवाद कहा जा सकता है। 2001 और 2011 की जनगणना में यहां वृद्धि दर 5% से भी कम रही है।
केरल ने इस आंकड़े को कठोर तरीकों को अपनाकर नहीं, बल्कि प्रजनन के सामाजिक आर्थिक पहलुओं को समझकर प्राप्त किया है। साथ ही यहाँ शिक्षा का स्तर अच्छा है (मुख्यतः स्त्री शिक्षा)। गरीबी कम होने से भी प्रजनन दर नियंत्रण में रखी जा सकती है।
- समाज के एक वर्ग का मानना है कि हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। साक्ष्य बताते हैं कि किसी एक राज्य में भले ही मुस्लिम आबादी में ज्यादा वृद्धि हुई हो, परंतु राज्यों के बीच की भिन्नता, समुदायों के बीच की भिन्नता की तुलना में अधिक है। केरल की मुस्लिम आबादी की तुलना में यूपी की हिंदू आबादी काफी तेज दर से बढ़ रही है। अतः प्रजनन क्षमता और जनसंख्या वृद्धि का मुख्य निर्धारक धर्म नहीं है।
इन तथ्यों से पता चलता है कि समुदाय आधारित और सामान्य रूप से जनसंख्या वृद्धि से चिंतित लोगों की आशंका निराधार है। जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण के उपायों पर पहले ही काम किया जा रहा है, जिसके परिणाम भविष्य में देखे जा सकते हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित शंकर रघुरमन के लेख पर आधारित। 16 जुलाई, 2021