जलवायु परिवर्तन से संबंधित पेरिस समझौते की वर्तमान स्थिति
Date:31-12-20 To Download Click Here.
जलवायु की बदलती स्थिति –
- वर्ष 2020, पिछले तीन वर्षों की तुलना में सबसे गर्म रहा।
- 2011-20, अभी तक का सबसे गर्म दशक माना जाएगा।
- 2020, जंगलों की आग के बढ़ने के अलावा भूमि और समुद्रों में विशेष रूप से आर्कटिक का तापमान बढ़ने के मामले में चरम पर रहा।
- अटलांटिक में हरिकेन की संख्या बढ़ी।
पेरिस समझौते की वर्तमान स्थिति पर एक नजर –
पृथ्वी की जलवायु के उथल-पुथल होने के बावजूद 2020 में जी-20 के देशों ने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के इरादे से लगभग 230 अरब डॉलर का निवेश, कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन में करने की प्रतिबद्धता दिखाई है। जबकि स्वच्छ ऊर्जा में 150 अरब डॉलर ही लगाया जाता है। देशों की इस प्रकार की नीति ने पृथ्वी के तापमान को 3.2°C बढ़ा दिया है।
संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट बताती है कि जी 20 समूह के देश जो विश्व ग्रीन हाउस गैस के 80% उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी हैं, पेरिस समझौते लक्ष्यों को पूरा करने में बहुत पीछे हैं।
पेरिस समझौते की सीमाएं
- यह समझौता स्वैच्छिक है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित लक्ष्यों का चुनाव करने के लिए देश स्वतंत्र हैं।
- सभी देशों को अपने उत्तरदायित्व के अनुरूप उत्सर्जन कम करना है। अमीर देशों का उत्तरदायित्व अधिक है। लेकिन अगर वे लक्ष्य पूरा न करें, तो उन पर दबाव नहीं डाला जा सकता।
- लक्ष्य पूरा न कर पाने पर किसी देश के लिए पेनल्टी का कोई विकल्प नहीं है।
- बहुत से देशों ने प्रारंभ से ही इस समझौते को एक आर्थिक लेन-देन ही समझा है। अतः यहाँ सहयोग की बजाय, प्रतिस्पर्धा पर ही वार्तालाप टिका रहता है।
ट्रंप को लगता है कि उत्सर्जन कम हो जाने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा और इसका लाभ चीन उठा लेगा। चीन भी कुछ ऐसा ही सोचता हैए और विश्व में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश होने के बावजूद, उसका नेशनली टिटरमान्ड कांट्रीव्यूशन (एन डी सी) ठीक नहीं है।
हर देश अपने हित के बारे में सोच रहा है। ऐसे में पृथ्वी के तापमान में 2°C से अधिक की बढ़त को रोकने का प्रयास कैसे सफल हो सकता है ?
कुछ समाधान –
- नवीनीकृत ऊर्जा, बैटरी, उच्च क्षमता वाले उपकरण और स्मार्ट ग्रिड आदि की कीमत तेजी से गिर रही है। ये सभी जल्द ही जीवाश्म ईधन तकनीक से प्रतिस्पर्धी लागत रखने लगेंगे।
- यदि सभी देश सहयोग करें, तो स्वच्छ ऊर्जा की लागत को और भी कम किया जा सकता है।
- सहयोग के लिए यू एन एफ सी सी और पेरिस समझौते से इतर भी कई मंच बनाने होंगे। इनमें जलवायु परिवर्तन मुख्य विषय हो।
- दुनिया के सभी रहवासियों को इस चुनौती से लड़ना होगा। विशेष तौर पर विश्व के 1% धनी वर्ग (जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं) को निजी तौर पर प्रयास करने होंगे।
- विश्व के सबसे धनी 100 निकायों में से दो-तिहाई कार्पोरेशंस हैं, सरकारी नहीं हैं। 1988 के बाद से ही ये 100 निकाय 71% गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। इनके पास कार्बन को निष्क्रिय करने के साधन हैं और इन्हें ऐसा न करने पर दण्ड दिया जाना चाहिए।
पेरिस समझौते के पाँच वर्ष बाद अब हम जलवायु परिवर्तन के ऐसे मोड पर हैं, जहाँ छल-कपट और विलंब के लिए कोई स्थान नहीं बचा है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चंद्र भूषण के लेख पर आधारित। 11 दिसम्बर, 2020