जलवायु परिवर्तन पर अपनी प्रतिबद्धताओं से बंधा भारत

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08 Sep 2022
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आगामी नवम्बर में होने वाली यूनाइटेड नेशन्स् फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज में शामिल देशों की बैठक के लिए केंद्र सरकार ने नेशनली डिटरमाइन्ड कॉन्ट्रीब्यूशन्स (एनडीसी) के औपचारिक वक्तव्य को मंजूरी दे दी है। इसमें भारत, जलवायु परिर्वतन से संबंधित अपनी कार्ययोजना का विवरण प्रस्तुत करेगा।

स्मरण योग्य कुछ बिंदु –

  • 2015 के पेरिस समझौते में यह सुनिश्चित किया गया था कि दुनिया को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म नहीं होना चाहिए। इस हेतु 2100 तक बढ़ते तापमान को 1.5° से कम रखने का प्रयास किया जाना है।
  • पेरिस के बाद कोपेनहेगन में हुई संबंधित बैठक में भी सभी सदस्य देशों ने संयुक्त समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। देशों को प्रत्येक पांच वर्ष में एनडीसी की रिपोर्ट दिखानी होती है। इसमें मुख्यतः 2020 के बाद जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को रोकने की कार्यनीति का चित्रण करना होता है। 2015 में भारत ने पहले एनडीसी ने आठ लक्ष्यों को निर्दिष्ट किया था।
  • सबसे प्रमुख लक्ष्य 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता को सकल घरेलू उत्पाद के 33%-35% तक कम करना है।
  • स्थापित बिजली क्षमता का 40% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करना है।
  • 2030 तक वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5-3 अरब टन CO2 के बराबर अतिरिक्त सिंक बनाना है।
  • 2021 के ग्लासगो में प्रधानमंत्री ने पांच प्रतिबद्धतओं को ‘पंचामृत’ के रूप में रखा था। इसमें 2030 तक भारत को अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाना और ष्नेट जीरोष् प्राप्त करना है।

यद्यपि भारत अपने दिए गए लक्ष्यों पर सफलतापूर्वक काम कर रहा है, फिर भी किसी भी मंच पर उसे उतना ही वादा करना चाहिए जितना कि वह पूरा कर सकता हो। यह उसके नैतिक आधार को मजबूत करता है। अतः भारत को अपनी गति से आगे बढ़ते हुए ऊर्जा के उपयोग, विकास और जलवायु लक्ष्यों को पूरा करना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 अगस्त, 2022

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