आर्थिक नीतियों में हस्तक्षेप करते न्यायिक निर्णय

Afeias
09 Sep 2022
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय की एक बेंच ने एक प्रस्ताव दिया है कि सरकारों द्वारा बांटी जाने वाली मुफ्त की रेवडियों के आर्थिक प्रभाव की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई जानी चाहिए। समय-समय पर न्यायालय इस प्रकार की सलाह या आदेश देते रहते हैं। उनकी चिंताओं को समझा जा सकता है। भारत का सौभाग्य है कि उसके पास एक अत्यंत स्वतंत्र और दूरदर्शी न्यायपालिका है। लेकिन कभी-कभी उसके आदेश हस्तक्षेप की श्रेणी में आ जाते हैं। इस पर विचार-विमर्श और मूल्यांकन की आवश्यकता है। जानते हैं कि ऐसी जरूरत क्यों है –

  • कभी-कभी न्यायालय के निर्णयों से देश में अनिश्चितता का माहौल बन जाता है। निर्णयों के आर्थिक प्रभाव से देश की विकास-संभावनाओं पर दबाव नहीं बनना चाहिए।
  • न्यायालयों को सिविल सेवकों के वास्तविक निर्णयों को स्वीकार करना चाहिए।
  • पहले से निपटाए गए मामलों को फिर से खोलने से कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों के ही उद्देश्यों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मामलों में उच्चतम न्यायालय अपनी प्रतिक्रियाओं को निम्न तरीकों से मजबूत कर सकता है –

  • न्यायालय अपनी स्वयं की मिसाल ले सकता है, और एक दीर्घकालिक रोडमैप और रूपरेखा तैयार कर सकता है। एक मामले में न्यायालय ने कहा था कि किसी निर्णय के आर्थिक प्रभाव को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
  • एक आर्थिक प्रभाव या लागत लाभ-विश्लेषण को ध्यान में रखना, न्यायाधीशों के लिए जिम्मेदार और स्थायी निर्णय लेने वाली मौलिक प्रक्रिया बन जानी चाहिए।
  • न्यायालय की सहायता करने के लिए विविध पृष्ठभूमि के विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र समिति गठित की जा सकती है। इससे मामलों का संतुलित मूल्यांकन हो सकता है।

इस त्रिविध मार्ग को अपनाने से सरकार के निर्णयों और निर्णयकर्ताओं के विरूद्ध कुछ हद तक मनमाने ढंग से कार्य करने वाले न्यायालयों की वर्तमान स्थिति को रोकने में मदद मिल सकती है। न्यायालयों को तयशुदा निर्णयों को फिर से खोलने के बजाय सिविल सेवकों द्वारा किए गए वास्तविक प्रगतिशील निर्णयों को स्वीकार करना चाहिए, और उनकी रक्षा करनी चाहिए, जो पहले से ही कानूनी जांच की कसौटी पर खरे उतरे हैं। निर्णयों को संतुलित और गहन आर्थिक विश्लेषण द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए। ये समाज के समग्र सुधार, पर्यावरण और आर्थिक विचारों को संतुलित करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 9 अगस्त, 2022

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