डिजिटल क्षमता को बढ़ाने के लिए कदम

Afeias
12 Sep 2022
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तेजी से विकसित हो रहा वैश्विक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र दुनिया भर के कानून और नीति निर्माताओं के लिए चुनौतियां पेश करता है। इस परिदृश्य में क्या भारत के दृष्टिकोण या गति में कुछ कमी है | क्या हम दूसरे देशों कुछ सीख सकते हैं?

चुनौतियां और जटिलताएं –

  • डिजिटल वैश्विक है, और विनियमन स्थानीय है।
  • प्रौद्योगिकी तेज गति से विकसित हो रही है, प्रक्रियाएं तेजी से अनुकूल हो रही हैं, और कानून-निर्माण बहुत धीमी गति से हो रहा है।
  • विनिमयन के लिए प्रवर्तन (एन्फोर्समेंट) की आवश्यता होती है। यह अधिकार क्षेत्र, कानूनों की क्षेत्रीयता, प्रभावी अंतरराष्ट्रीय सहयोग, नियामक संस्थानों और अदालतों की क्षमता और प्रवर्तन की तकनीकी व्यवहार्यता पर सवाल उठाता है।

समाधान –

  • प्रत्येक देश का अपना आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र होता है। उसी के अनुसार विनियमन को स्थानीयकृत किया जाना चाहिए।
  • विनियमन को सरल रखा जाना चाहिए। जटिल विनियमन के लिए एक विस्तृत नियामक मशीनरी की आवश्यकता बनती चली जाती है, और उद्देश्य अधूरा ही रह जाता है। ऐसे में केवल बड़ी तकनीकी और आर्थिक रूप से शक्तिशाली कंपनियां ही कानूनों का पालन कर सकती हैं या कानूनी रूप से उन्हें दरकिनार कर सकती हैं। छोटी कंपनियां अनुपालन के ज्यादा बोझ से डील नहीं कर पाती हैं।
  • प्रौद्योगिकी को विनियमित करने वाले कानूनों को प्रौद्योगिकी से दूर रहना चाहिए। इन कानूनों को अनिवार्य कार्यों और परिणामों तक सीमित रहना चाहिए।
  • सिद्वांतों और वांछित परिणामों पर ही ध्यान दिया जान चाहिए। प्रौद्योगिकी या प्रक्रिया विवरण में उलझना ठीक नहीं है।
  • वर्चुअल और फिजिकल आपस में जुड़े हुए हैं। इनके लिए अलग-अलग नीतियों और नियमों से बचना चाहिए। डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम में फिजिकल को अलग रखना एक गलती थी।
  • विनियमन का उद्देश्य डिजिटल दुनिया को परिपूर्ण बनाना नहीं होना चाहिए। विनियमन को सरल रखते हुए, जरूरत पर ट्रैक करने के लिए उसका इस्तेमाल होना चाहिए।
  • विभिन्न मंचों और नेटवर्क का दबाव प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है। अतः बाजार प्रभुत्व के दुरूपयोग को रोका जाना चाहिए।
  • घरेलू मंच को प्रोत्साहित करना ही राष्ट्रीय रणनीति का प्रमुख भाग होना चाहिए। साथ ही नवीनतम तकनीक और अंतरराष्ट्रीय फंडिंग तक पहुंच सुनिश्चित करना भी जरूरी है।
  • रेग्युलेटरी या नियामक हस्तक्षेप और तकनीक प्रबंधकीय अनुपालन का बोझ कम करने के लिए तकनीकी व्यवहार्यता जरूरी है।
  • डिजिटल सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता पूर्ण नहीं हो सकती है। सुविधा और आर्थिक लाभ में उतार-चढ़ाव होता ही रहेगा।
  • बुनियादी मानदंडों को अनिवार्य किया जाना चाहिए। इन्हें कानून के अंतर्गत लाया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक लाभ को संतुलित करना ही मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
  • डिजिटल स्पेस पर सरकार का सख्त नियंत्रण और विदेशी निवेश की प्राप्ति, दोनों विपरीत रूप से संबंधित हैं। दोनों में सतर्क संतुलन की जरूरत है।

डिजिटल विनियमन तैयार करने के लिए एक खुली पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। डिजिटल दुनिया में कोई भी पूरी तरह से अनुमान नहीं लगा सकता है कि कौन और क्या कब प्रभावित हो सकते हैं। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) जिस प्रक्रिया का अनुसरण करता है, वह अनुशंसनीय है।

हमारे डिजिटल भविष्य के आकार और अपने हितों की सेवा के लिए नियामकीय बाधाओं के आने पर सिद्धांतों का पालन न करने के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने की हमारी क्षमता मायने रखती है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित आर. चंद्रशेखर के लेख पर आधारित। 12 अगस्त, 2022

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