जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण में व्यापारिक परिवार समूहों की भूमिका

Afeias
01 Apr 2021
A+ A-

Date:01-04-21

To Download Click Here.

हम सब जलवायु परिवर्तन के कठिन दौर से गुजर रहे हैं। भारत में सामान्यतः निजी क्षेत्र की इस संबंध में कोई खास भूमिका नहीं रही है। परंतु वर्तमान स्थितियां बदल रही हैं। इसी संदर्भ में 5 नवम्बर, 2020 को कुछ प्रमुख कंपनियों ने जलवायु परिवर्तन पर एक घोषणा पत्र जारी किया है। इस दिशा में पहले कदम के रूप में इसे सराहनीय कहा जा सकता है।

पूरे व्यापारिक जगत में परिवारवाद का ही प्रभुत्व है। यह केवल भारत में नहीं, अपितु पूरे विश्व की स्थिति है। चीन और अमेरिका के बाद भारत में सबसे ज्यादा ऐसी कंपनियां हैं, जो एक परिवार के नियंत्रण में पीढ़ी दर-पीढ़ी चली आ रही हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की 30 प्रतिष्ठित कंपनियों में से 15 परिवार के द्वारा ही चलाई जा रही हैं । ये प्रमुख कंपनियों कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन के व्यापार में संलग्न हैं, और भारत में कार्बनडाइ उत्सर्जन के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार भी हैं।

टाटा, रिलायंस, अडानी, जिंदल जैसे प्रमुख सात बिजनेस समूह देश के 22% कार्बन उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी हैं। अगर ये कंपनियां जलवायु परिवर्तन के प्रति गंभीर दृष्टिकोण से देखें, तो भारत का उत्सर्जन प्रोफाइल तो बदलेगा ही, जलवायु परिदृश्य में भी बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। इस बात के प्रमाण भी हैं कि पारिवारिक व्यवसाय, गैर-पारिवारिक फर्मों की तुलना में निवेश पर अधिक दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखते हैं। अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि ये सामाजिक रूप से अधिक जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि ये उन क्षेत्रों के सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे में निवेश करते हैं।

निवेश संबंधी इस प्रकार के निर्णय लेने के पीछे पारिवारिक समूहों की अपनी अनूठी संरचना है। अन्य कार्पोरेट से भिन्न, पारिवारिक व्यवसाय पितृ या मातृसत्तात्मक होते हैं। ये ही अंतिम निर्णय लेने की शक्ति रखते हैं, और जिम्मेदारी भी रखते हैं।

कुछ समूहों ने तो इस दिशा में आगे बढ़ना शुरू भी कर दिया है। रिलायंस उद्योग ने कार्बन मुक्त कंपनी बनने हेतु 2035 तक का लक्ष्य रखा है। समूह ने हाइड्रोजन, पवन, सौर, फ्यूल सेल और बैटरी जैसी नई ऊर्जा कंपनी बनने की दिशा में अरबों डॉलर का निवेश करने की योजना बनाई है। कुछ अन्य पारिवारिक समूहों ने भी ऐसी प्रतिबद्धताएं दिखाई हैं।

विडंबना यह है कि ऐसी मनभावन घोषणाओं के बावजूद ये समूह जीवाश्म ईंधन में निवेश किए जा रहे हैं। हाल ही में कोयला खदानों की नीलामी में वेदांता, आदित्य बिड़ला और अडानी समूहों ने कई खदानों का अधिग्रहण किया है।

भारतीय पारिवारिक व्यापारिक समूहों के साथ अक्सर ऐसा विरोधाभास देखा जाता रहा है। यूं तो वे एक व्यापक दृष्टिकोण लेकर चलते हैं, परंतु अवसरवादी भी होते हैं, और सरकारी प्रोत्साहन के विस्तार वाले क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाए रखना चाहते हैं। चूंकि इन समूहों का वर्चस्व सरकारी नीतियों पर भी देखा जाता रहा है, इसलिए अच्छा तो यही होगा कि इन्हे बोर्ड में शामिल करके जलवायु संबंधी नीति पर कुछ सतत् काम किया जाए।

इनकी आर्थिक प्रगति और नीतिगत प्रभाव को देखते हुए, जलवायु परिर्वतन के लिए आवश्यक परिवर्तनकारी प्रयासों में तेजी लाने हेतु इन परिवारों की प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण होगी।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चंद्रभूषण के लेख पर आधारित। 6 मार्च, 2021

Subscribe Our Newsletter