जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए इतना काफी नहीं

Afeias
12 Dec 2017
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Date:12-12-17

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हाल ही में जर्मनी में जलवायु परिवर्तन पर यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन का ‘कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज़’ (COP-23) सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन का उद्देश्य पेरिस समझौते के कार्यान्वयन के लिए तकनीकी दिशानिर्देश एवं प्रक्रियाओं द्वारा नियम बनाना था। इसके माध्यम से पेरिस समझौते के अनुपालन और निरीक्षण क लिए स्पष्ट दिशानिर्देश मिले।पेरिस समझौते से संबंधित उठाए जाने वाले कदमों का लक्ष्य 2020-2030 तक का रखा गया है। क्योटो प्रोटोकॉल और कॉप-23 के सम्मेलनों से कुछ बिन्दु ऊभरकर सामने आते हैं-

  • धनी देशों को हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाना होगा। गरीब एवं विकासशील देशों के दबाव में कॉप-23 सम्मेलन में इसे 2020 तक प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य का हिस्सा बनाया गया। इसके परिणामस्वरूप 2018 और 2019 में क्योटो प्रोटोकॉल पर उठाए जाने वाले कदमों की प्रगति का हिसाब लगाया जा सकेगा।
  • हानि और विनाश वाले कार्यक्रम के तहत अमीर देशों द्वारा किए जा रहे आर्थिक और गैर-आर्थिक नुकसान की भरपाई पर कार्यवाही की जा सकेगी। वॉर्सा में हुए कॉप-19 सम्मेलन में वॉर्सा इंटरनेशनल मैकेनिज्म फॉर लॉस एण्ड डेमेज को स्थापित किया गया। इसमें निष्कर्ष निकाला गया कि यदि अमीर देश उत्सर्जन में कमी करते भी हैं, तो भी वायुमंडल में मौजूद ग्रीन हाउस गैस गरीब देशों को हानि पहुँचाएगीं ही। इसके चलते इन देशों को अमीर देशों से अपने आर्थिक एवं गैर-आर्थिक क्षेत्रों में होने वाले नुकसान की भरपाई लेने का पूरा अधिकार है।
  • हांलाकि हानि और विनाश की भरपाई का कोई नियम पेरिस समझौते में उल्लिखित नहीं है। फिलहाल इसे 2018 के लिए टाल दिया गया है। पिछले कुछ वर्षों में विश्व के कुछ भागों में गंभीर प्राकृतिक आपदाएं आ चुकी हैं। अतः इस मुद्दे पर गंभीरता से कार्यवाही किए जाने की आवश्यकता है।
  • इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि अमीर देश वित्त, तकनीक और निर्माण क्षमता के जरिए गरीब देशों को कार्बन के कम उत्सर्जन एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करें। इन विषयों पर कॉप-23 में बहुत से विवाद रहे, जिनका कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। ग्रीन क्लाइमेट फंड में 2020 तक प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर जमा करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकी है। यही करण है कि मुख्य मुद्दों पर कोई प्रगति नहीं की जा सकी एवं अनेक महत्वपूर्ण निर्णयों को 2018 के सम्मेलन के लिए स्थगित कर दिया गया।

वार्ताकारों ने पेरिस समझौते पर कार्यान्वयन के लिए एक अस्थायी समूह का गठन किया है, जो 2018 तक नीतियों को तैयार करेगा।

उपलब्धियाँ

कुछ वर्षों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगा हुआ था। 2017 में इन गैसों के उत्सर्जन में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका कारण चीन के कोयला संयंत्रों से बिजली के अधिक उत्पादन को माना जा रहा है। जीवाश्म ईंधन के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए जर्मनी में भी प्रदर्शन किया गया है। पेरिस समझौते को सफल बनाने के लिए कोयले के प्रयोग को रोकना जरूरी है।कॉप-23 में पावरिंग पास्ट कोल एलायंस किया गया, जिसमें कनाड़ा और ब्रिटेन सहित कई देशों ने हिस्सा लिया है।इस सम्मेलन के देशों ने जलवायु परिवर्तन और कृषि पर पड़ने वाले उसके प्रभावों हेतु एक एक्शन प्लान प्रस्तावित किया। इसमें भूमि की उर्वरक क्षमता और कार्बन, भूमि-प्रबंधन एवं पशुपालन संबंधी विषयों को शामिल किया गया।भारत के लिए यह अच्छा अवसर है, जब वह अन्य देशों से सीखकर एवं स्थानीय ज्ञान का मेल करके उसे काम में लाए।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित सुजाता बिरावन के लेख पर आधारित।

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