हिमालयी पर्यटन के प्रति लोगों का रुझान बदलने की जरूरत है
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नए साल की छुट्टियों का मौसम शुरू होते ही सैलानी हिमालयी पर्यटन स्थलों की ओर टूट पड़ते हैं। वहाँ की ट्रैफिक जाम की तस्वीरें संवेदनशील हिमालयों पर बढ़ते सैलानियों के बोझ को कम किए जाने का लगातार संकेत दे रही हैं। हिमालय के पर्यटन स्थलों के महत्व के साथ ही क्षेत्र की संवेदनशीलता के अनुरूप पर्यटन के विकास पर कुछ बिंदु –
- हिमालयी क्षेत्र और पश्चिमी घाट देश के दो महत्वपूर्ण जैव-विविधता वाले क्षेत्र हैं। हिमालय क्षेत्र में 15 राष्ट्रीय उद्यान और 59 अभ्यारण्य हैं।
- नियमित पर्यटन स्थलों के साथ-साथ वहाँ अनेक तीर्थस्थल भी मौजूद हैं। 2011 और 2020 के बीच जम्मू-कश्मीर में सामान्य पर्यटकों की अपेक्षा तीर्थयात्रियों की संख्या अधिक थी।
- 2020 के अंत तक उत्तराखंड में वार्षिक पर्यटकों की संख्या 70 लाख पहुँच चुकी थी। जबकि 2011 में यहाँ की जनसंख्या 1 करोड़ थी। सिक्किम में निवासी पर्यटक अनुपात अधिक विषम था। 2011 में राज्य की जनसंख्या1 लाख थी, जबकि 2019 तक वार्षिक पर्यटक संख्या 15 लाख थी।
- पर्वतीय राज्यों में पर्यटन आर्थिक गतिविधि का महत्वपूर्ण स्रोत है। इसलिए इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है। लेकिन, पर्यटन की भिन्न प्रकृति को प्रोत्साहित कियाजा सकता है।
- भारत की पर्वत श्रृंखलाएं जैव-विविधता के साथ इको-टूरिज्म के लिए आदर्श स्थान हैं। फोकस को बदलने से बुनियादी ढांचे की मांग की प्रकृति भी बदल जाएगी।
- धारणीय विकास सिद्धांतों में भी पर्वतीय क्षेत्र के पर्यटन को सतत् या टिकाऊ और समावेशी आर्थिक प्रगति से जोड़कर देखा गया है।
- 2017 में नीति आयोग ने हिमालयी क्षेत्रों में धारणीय पर्यटन को प्रमुख थीम माना था। इसकी नीतियों के चलते पर्यटन में तो खासी वृद्धि हुई है, लेकिन हिमालय के पर्यावरण के बढ़ते ह्मस पर ध्यान नहीं दिया गया है।
दोनों पक्षों को साथ लेकर चलने का मध्य मार्ग यही है कि लोगों में प्रकृति के संरक्षण की भावना को जगाया जाना चाहिए। स्थानीय पर्यावरण और पारिस्थितिकी के प्रति पर्यटकों को जागरूक और उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। पर्यटकों की संख्या को नियंत्रित किया जाना चाहिए। सही नीतियों और उनके सही कार्यान्वयन के साथ पर्यटकों और हिमालय क्षेत्र, दोनों की ही रक्षा की जा सकती है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 दिसंबर, 2023