जी7 देशों का पीजीआईआई भारत के हित में है
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द पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एण्ड इंवेस्टमेन्ट, जी 7 देशों की एक ऐसी पहल है, जो चीन के बेल्ट-रोड इनिशिएटिव कार्यक्रम के जाल में फंसे देशों को उससे मुक्त करने का प्रयत्न करेगी। इससे जुड़े कुछ मुख्य बिंदु –
- लगभग 40 विकासशील देश ऐसे हैं, जिन पर चीनी ऋण का बोझ, उनके सकल घरेलू उत्पाद के दसवें हिस्से से अधिक है।
- जी 7 के अमीर देशों ने इस पहल में 600 अरब डॉलर जुटाने का लक्ष्य रखा है। इस राशि से उन अर्थव्यवस्थाओं को राहत दी जानी है, जो बंदरगाहों, राजमार्गों और रेलवे के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए चीनी कर्ज में डूबे हुए हैं।
- इस ऋण से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के किए गए मुक्त व्यापार समझौतों को प्रतिद्वंदिता का सामना करना पड़ेगा। इसमें मुख्य भूमिका अमेरिका की है, जो चीन की दादागिरी को नियंत्रण में रखकर एक व्यापार व्यवस्था को पुनर्जीवित करना चाहता है।
- इंडो-पैसिफिक इकॉनॉमिक फ्रेमवर्क का मुख्य फोकस आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन, सामंजस्यपूर्ण ईकॉमर्स नियम, स्वच्छ ऊर्जा, भ्रष्टाचार विरोध तथा चीन समर्थित आरसीईपी में गायब तत्वों पर है।
आईपीईएफ का स्वागत इसलिए किया जा सकता है कि यह चीन के प्रभाव पर अंकुश लगाने के लिए काम करता है। अन्यथा लोकतांत्रिक मूल्यों पर इसके लिए सदस्य जुटाने का काम आसान नहीं है। यदि भारत के नजरिए से देखें, तो इसका हित आईपीईएफ की सफलता में है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 जून, 2022
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