चिकित्सा महाविद्यालयों के लिए नीति आयोग की नीतियाँ
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- भारत की जनसंख्या के अनुसार चिकित्सकों की बहुत कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन जहाँ 1,000 लोगों पर एक चिकित्सक की अनुशंसा करता है, वहीं हमारे देश में 2,000 लोगों पर एक चिकित्सक है।
- नीति आयोग ने राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद् के अंतर्गत चिकित्सा स्टाफ में वृद्धि की सिफारिश की है।
- परिषद् ने चिकित्सकीय स्टाफ में वृद्धि के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता में सुधार के लिए निम्न कुछ सुझाव दिए भी हैं।
(1) चिकित्सकों को समय-समय पर उनके लाइसेंस का नवीनीकरण कराने की प्रक्रिया से गुजरना होगा। इससे नए शोधों के प्रति उनकी जागरुकता को बनाए रखा जा सकेगा।
(2) निरीक्षण कार्य सम्पन्न करने के लिए परिषद् को ऐसे चिकित्सा संस्थानों के वरिष्ठ सदस्यों की एक सलाहकार समिति के सहयोग की आवश्यकता होगी, जो विभिन्न राज्यों या केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हों।
(3)परिषद् चार स्वायत्त बोर्ड के जरिए चिकित्सकीय शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रैक्टिस का निरीक्षण करेगा। ये चार बोर्ड स्नातक चिकित्सा शिक्षा, स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा, मूल्यांकन और प्रत्यायन तथा चिकित्सकीय पंजीकरण होंगे।
- लाभ पर आधारित चिकित्सा महाविद्यालयों एवं शुल्क नियमन के बारे में व्याप्त संशय को भी नीति आयोग दूर करने की सोच रहा है। नए महाविद्यालयों को अनुमति मिलने से शुल्क में भी कमी आएगी।
- सुचारु रूप से काम कर रहे अस्पतालों को चिकित्सकीय शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
- नीति आयोग की इस सिफारिश के अनुसार 40 प्रतिशत सीटें गरीब मेधावी छात्रों के लिए पूर्ण छात्रवृत्ति पर आरक्षित होंगी।
- शिक्षकों के वेतन में छूट मिलने से अब वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध चिकित्सकों को ‘पार्ट-टाइम’ आधार पर पढ़ाने के लिए बुलाया जा सकेगा।
पाठ्यक्रम में भी छूट देने से अब अच्छे महाविद्यालयों में नवीनता आएगी।
- आज अच्छे महाविद्यालयों की भी बहुत कमी है। चिकित्सा की 55,000 सीट के लिए ग्यारह लाख विद्यार्थी कोशिश करते हैं। अभी तक इसका कारण सरकारी शिक्षा पर निर्भरता रही है। यदि हम विश्व में देखें, तो निजी विश्वविद्यालय ही आज सर्वोत्कृष्ट स्तर पर हैं। फिर हम क्यों अभी तक सरकार पर निर्भर हैं।
- वर्तमान में दो प्रमुख कमियां नजर आती हैं (1) चिकित्सा के क्षेत्र में ग्रामों को नजरअंदाज करना, और (2) चिकित्सकों की मनमानी या गलत इलाज के विरोध में मरीजों को संरक्षण न देना।
इन सिफारिशों को लागू करना आसान नहीं होगा, क्योंकि मेडिकल कांउसिल आॅफ इंडिया के सदस्य काफी पहुँच रखते हैं, और वे चिकित्सकों की संख्या को बढ़ाने की बात पर तैयार नहीं होंगे। संसद के सभी दलों की इस बारे मेंसहमति है। अगर यह कानून बन जाता है, तो भारत में सभी प्रकार की शिक्षा के नियमन के लिए यह एक मिसाल सिद्ध होगी।
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