कॉपीराइट एक्ट के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय

Afeias
06 Oct 2016
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du-phtocopy-featured-images-500x333Date: 06-10-16

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हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अकादमिक पुस्तकों से फोटोकॉपी कराकर विद्यार्थियों के लिए कोर्सपैक बनाने को वैध करार दिया है। न्यायालय का यह निर्णय उत्कृष्ट शिक्षा सामग्री को कम दामों पर सहज ही उपलब्ध कराने की दिशा में स्वागत योग्य कदम है।

  • पिछले दिनों ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस तथा टेलर एण्ड फ्रांसिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के विरूद्ध एक याचिका दायर की थी, क्योंकि विश्वविद्यालय ने एक फोटोकॉपी वाले को इन प्रकाशनों की पुस्तकों से सामग्री लेकर कोर्सपैक की अनेक प्रतियां बनाने को कहा था। इन प्रकाशकों का कहना था कि ऐसा करना कॉपीराइट कानून का उल्लंघन करना है।
  • न्यायालय ने इस संदर्भ में यह भी स्पष्ट किया है कि अभी भारत में कॉपीराइट आम कानून अधिकार में नहीं आता। फिर भी यह कानून से संबंद्ध है। सैक्शन 52(1) (i) के कॉपीराइट एक्ट में किसी शिक्षक या विद्यार्थी को पाठ्यक्रम के अंतर्गत आने वाली साहित्यिक सामग्री की प्रतिलिपि लेने का अधिकार है।
  • कानून क्या कहता है?
    • सन् 1951 के कॉपीराइट एक्ट क अनुभाग 14 में कॉपीराइट धारकों को बहुत से अधिकार दिए गए हैं। इसके अंतर्गत किसी भी कृति के व्यावसायिक उपयोग के लिए की जाने वाली प्रतिलिपि को अनुभाग 14 का उल्लंघन माना जाएगा। साथ ही यह भी प्रावधान है कि यदि यह प्रतिलिपि अनुभाग 52(1) (i) के अंतर्गत आती है, तो वह किसी प्रकार का उल्लंघन नहीं होगा।
    • अनुभाग 52 में स्पष्ट रूप से तीन ऐसे बिन्दु दिए गए हैं, जिनके अंतर्गत प्रतिलिपि वैध है-अगर (1) किसी शिक्षक या विद्यार्थी ने इसे पाठ्यक्रम के अंतर्गत आने वाली सामग्री के रूप में लिया हो। (2) परीक्षा में किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिया हो, तथा (3) किसी शिक्षण संस्थान के स्टाफ या विद्यार्थियों द्वारा प्रयोग में लाई गई हो।
    • दरअसल, कॉपीराइट एक्ट सृजनात्मकता के विकास में विश्वास करता है। वह उसे सामान्य-जन को आसानी से उपलब्ध कराना चाहता है। इस कानून के पीछे का सामान्य तर्क यही है कि पर्याप्त सुरक्षा के साथ किसी भी सृजनात्मकता को बढ़ावा मिलना चाहिए। भले ही यह कॉपीराइट धारकों के लिए एक अपवाद की तरह है, परन्तु शोध एवं अकादमिक उद्देश्यों के लिए यह एक रोशनदान की तरह काम कर रहा है।
    • दूसरी ओर, कॉपीराइट धारक किसी भी सृजन या रचना पर निवेश करते हैं। ऐसे में अब न्यायालय के इस निर्णय से कॉपीराइट धारकों के लिए बचता ही क्या है? इस निर्णय में ‘निर्देशों के पाठ्यक्रम’ में निर्धारित सामग्री की प्रतिलिपि पर कोई सीमा नहीं लगाई गई है। यहाँ सवाल यह भी उठता है कि अगर निर्धारित पाठ्यक्रम पूरी पुस्तक पढ़ने को कहता है, तो क्या पूरी पुस्तक की प्रतिलिपि ली जा सकती है? न्यायालय आयुक्त ने इस बात की पुष्टि की है कि ‘आठ पुस्तकें अग्रिम कवर से लेकर अंतिम कवर तक फोटोकॉपी की हुई मिली हैं। तो क्या न्यायालय अपने निर्णय में अकादमिक समुदाय और कॉपीराइट धारकों के बीच संतुलन बना पाया है? ऐसा लगता नहीं। इस निर्णय से शिक्षा के क्षेत्र में स्थापित प्रकाशकों के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।
    • कॉपीराइट एक्ट को सृजनात्मकता क विकास एवं कॉपीराइट धारकों के हितों के बीच एक संतुलन बनाने की नितांत आवश्यकता है।

समाचार पत्रों पर आधारित

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